Book Title: Jain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Author(s): Hirabai Boradiya
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 388
________________ लेरिवका का परिचय डॉ० ( श्रीमती ) होराबाई बोरदिया का जन्म उज्जैन (मध्यप्रदेश) में ई० सन् 1918 में हुआ। उन्होंने सन् 1647 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से साहित्यरत्न, सन् 1648 में आगरा विश्वविद्यालय से बी०ए० तथा सन् 1957 में विक्रम विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1676 में "विदुषी जैन महिलाएँ और साध्वियों" विषय पर इन्दौर विश्वविद्यालय ने आपको पी-एच० डी० की उपाधि प्रदान की। आपका विवाह विश्व-प्रसिद्ध क्षय-रोग विशेषज्ञ पद्मश्री डॉ. नन्दलाल बोरदिया के साथ मई 1632 में हुआ था। आपने अपने पति के साथ अमेरिका, ग्रेटब्रिटेन, फ्रान्स, डेनमार्क, जर्मनी आदि अनेक देशों की यात्रायें की। विद्या-प्रेम के साथसाथ आपको समाज-सेवा में भी प्रारम्भ से ही रुचि रही है / आप अनेक समाजसेवी संस्थाओं से जुड़ी रहो हैं और अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी हुईं। आपके अनेक निबन्ध विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। आपके एकमात्र पुत्र डॉ. स्वामी ब्रह्मेशानन्द जी युवावस्था में ही संन्यास ग्रहण कर रामकृष्ण मिशन के अन्तर्गत अध्यात्म-साधना और सेवा में लगे हुए हैं। इस प्रकार आपका सम्पूर्ण परिवार समाज सेवा और विद्योपसना के प्रति समर्पित है।

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