Book Title: Jain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Author(s): Hirabai Boradiya
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 373
________________ ३०६ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियों एवं महिलाएँ ७. महासती जेठांजी ९. महासती झमकूजी ११. महासती कनकप्रभाजी | ८. महासती कानकुमारीजी १०. महासती लाडांजी प्रथम तीन साध्वियाँ प्रमुखा पद प्राप्त नहीं थीं, किन्तु उन्होंने साध्वी प्रमुखा की तरह सारा कार्यभार सँभाला था, अन्य ८ साध्वियों को आचार्यों ने साध्वीप्रमुखा पद पर स्थापित कर साध्वी समाज की देखरेख का कार्यभार सौंपा। सर्वप्रथम जयाचार्य ने महासती सरदारांजी को विधिवत् प्रमुखा पद पर नियुक्त किया। प्रस्तुत है अग्रणी साध्वियों का उपलब्ध जीवनवृत्त । 1 १. महासती दीपांजी - साध्वी श्री दीपांजी का जीवन अनेक गुणों से परिपूर्ण था । सहज श्रद्धा का उद्रेक, चारित्र के प्रति निष्ठा, संयम के प्रति अनुराग, सहधार्मिकों के प्रति स्नेह और वात्सल्य ये आपके मौलिक गुण थे । निर्भीकता, वाक्कौशल, गति, मति, स्थिति गुरुदृष्टि- अनुसारिणी थीं । पठन-पाठन में विशेष रुचि थी। एक बार डाकू से साक्षात्कार हुआ । उसने साध्वियों को लूटना चाहा । आपने ओज भरे शब्दों से कहा - "हम जैन साध्वियाँ हैं । पुरुष का स्पर्श नहीं करतीं । छूना मत।" सामान नीचे रख दिया । एक वृत्त बनाकर सभी साध्वियाँ बैठ गयीं । महासती दीपांजी उनके बीच में बैठ गयीं । उच्च स्वर से नमस्कार महामन्त्र का जाप शुरू कर दिया, लुटेरे ने समझा यह तो किसी देवी की आराधना कर रही है, न मालूम मेरी क्या दशा कर देगी। वह डरकर सामान छोड़कर भाग गया । आपका जन्म स्थान जोजावर था । आचार्य भारमलजी के हाथों १६ वर्ष की अवस्था में दीक्षा ली । ५० वर्ष तक साधना कर वि० सं० १९९८ की भाद्रपद कृष्णा ११ को आमेट में २० प्रहर के अनशनपूर्वक स्वर्ग सिधारीं । २. महासती सरदारांजी - संकल्प में बल होता है और आशा में जीवन | सरदारां सती का जीवन संकल्प और आशा की रेखाओं का स्पष्ट चित्र है । वि० सं० १८६५ में चूरू में आपका जन्म हुआ । दस वर्ष की बाल्यावस्था में विवाह हुआ । चार मास पश्चात् पति का वियोग सहन करना पड़ा । सुकुमार हृदय पर वज्राघात लगा । उसी वर्ष मुनि श्री जीतमलजी का चातुर्मास चूरू में हुआ । सरदारां सती ने उस पावस में अपनी जिज्ञासाओं का समुचित समाधान पा तत्त्वों को मान, तेरापंथ की श्रद्धा स्वीकार की । १३ वर्ष की अवस्था में यावज्जीवन चौविहार का व्रत ले लिया, सचित्त-त्याग आदि अनेक प्रत्याख्यान किए, विविध प्रकार का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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