Book Title: Jain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Author(s): Hirabai Boradiya
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 383
________________ महत्तरा श्री मृगावतीश्री जी आधुनिक युग की जैन साध्वियों में तपागच्छ के विजयानन्द सूरि की परम्परा की महत्तरा साध्वी श्री मगावती जी का नाम महत्त्वपूर्ण है। दुर्भाग्य से श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय में तपागच्छ की साध्वियों के सन्दर्भ में जानकारी का अभाव ही है। अतः प्रस्तुत विवरण में खरतरगच्छ को छोड़कर तपागच्छ एवं अन्य संघों की साध्वियों के संबंध में कोई विवरण नहीं दिया जा सका है। किन्तु तपागच्छ में महत्तरा मृगावती श्री जी कानाम एक ऐसा नाम है जिसे विस्मृत नहीं किया जा सकता। मगावती श्री जी का जन्म राजकोट से १६ मील दूर सरधार नामक ग्राम में हुआ था। आपश्री ने अपनी माता के साथ विक्रम सं० १९९५ पौष शुक्ला दशमी को बारह वर्ष की उम्र में ही जैन साध्वी की दीक्षा ले.ली थी। आपश्री का अध्ययन आगम प्रभाकर श्री पुण्यविजय जी, पं० सुखलाल जी, पं० बेचरदासजी, पं० दलसुख भाई मालवणिया जैसे जैन विद्या के वरिष्ठ विद्वानों के सान्निध्य में हुआ । आपश्री एक विदुषी साध्वी थीं। उदारदष्टि सम्पन्न गुरुओं का सान्निध्य पाकर आप उदारहृदया बन गईं थीं। साम्प्रदायिक अभिनिवेश से मुक्त और वैज्ञानिक दृष्टि से चिन्तन करने की क्षमता आपमें अद्भुत थी। मूलतः गुजरात की होते हुए भी आपका कार्यक्षेत्र मुख्यरूप से उत्तर भारत रहा। पंजाब का सम्पूर्ण जैन समाज-चाहे वह स्थानकवासी हो, या मूर्तिपूजक, वह आपके प्रति अनन्य आस्थावान रहा है। आपकी प्रवचन शैली में माधुर्य और प्रवाहशीलता थी । आपश्री के बम्बई, कलकत्ता आदि अनेक क्षेत्रों में सार्वजनिक प्रवचन हुए। आपश्री की प्रेरणा में देहली में वल्लभस्मारक और भोगीलाल लहरचन्द भारतीय विद्या संस्कृति मन्दिर की स्थापना हुई। इसी प्रकार कांगड़ा तीर्थ का जीर्णोद्धार भी आपकी प्रेरणा से हआ । आपके उपदेश से आत्मानन्द हाई स्कूल हरियाणा, आत्मानन्द जैन कालेज अम्बाला जैसी अनेक शिक्षण संस्थाओं का सम्पोषण हुआ है। इसमें वल्लभ-स्मारक का निर्माण कार्य तो अद्भुत है। लगभग तीन करोड़ रुपये के व्यय से निर्मित यह स्मारक साध्वी श्री जी की यशोगाथा को युग-युगों तक स्मृत कराता रहेगा। आप स्वयं तो विदुषी थी ही, विद्वानों को सम्मान देने में भी सदैव सहृदय रहती थीं। जहाँ आप दूसरों के प्रति अत्यन्त उदार थीं वहीं अपने प्रति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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