Book Title: Jain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Author(s): Hirabai Boradiya
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 382
________________ तेरापंथ की अग्रणी साध्वियां : ३१५. आपकी सतत प्रवाहिनी लेखनी जनजीवन को नया चिन्तन, नव्यप्रेरणा व नूतन सन्देश देती है। आगम सम्पादन के गुरुतर कार्य में भी सतत संलग्न हैं । आचार्यप्रवर के प्रमुख काव्य-कालूयशोविलास, डालिमचरित्र, माणक महिमा, नन्दन निकुज, चन्दन की चुटकी भली आदि का आपने सफलतापूर्वक सम्पादन किया। 'आचार्यश्री तुलसी दक्षिण के अंचल में, आपको अपूर्व कृति है और 'सरगम' में आपको काव्यमयी प्रतिभा की एक झलक मिलती है जो भक्तिरस से ओत-प्रोत है। आपका समर्पण भाव अनठा है । आचार्यश्री के हर इङ्गित को समझकर उसको क्रियान्वित करती हैं। नियमितता तथा संकल्प को दृढ़ता आपके जीवन की विशेष उपलब्धि है-जिसके फलस्वरूप इतने व्यस्त कार्यक्रम में भी आप जो करणीय है, वह करके ही रहती हैं। आपके महान् व्यक्तित्व और कर्तृत्व को शब्दों की सीमा में आबद्ध करना शक्य नहीं है। आप आगे आने वाले सैकड़ों युगों तक जन-जन का मार्ग प्रशस्त करती रहेंगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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