Book Title: Jain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Author(s): Hirabai Boradiya
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 384
________________ महत्तरा श्री मृगावती श्री जी : ३१७एवं अपने साध्वी वर्ग के प्रति नियम-व्यवस्था की दृष्टि से अत्यन्त कठोर भी थीं । आडम्बर युक्त कार्यों से आप सदैव दूर रहती थीं और साध्वी जीवन के नियमों का पालन अत्यन्त सजगता पूर्वक करती थीं । आपकी शिष्याओं में पूज्य साध्वी सुज्येष्ठा श्री जी, सुव्रताश्री जी, सुयशा श्री जी एवं सुप्रज्ञाश्री जी हैं । इनमें में साध्वी सुज्येष्ठा श्री जी का स्वर्गवास हो गया है । आपका शिष्या मण्डल भी प्राज्ञ एवं सहृदय है और अपनी पूज्य गुरुणी के आदेशों और निर्देशों के पालन में सदैव तत्पर रहता है । आप श्री का स्वर्गवास १८ जुलाई १९८६ को वल्लभ स्मारक देहली में हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only -सम्पादक www.jainelibrary.org

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