Book Title: Jain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Author(s): Hirabai Boradiya
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 378
________________ तेरापंथ की अग्रणी साध्वियां : ३११ संचालन शैली सुघड़ ज्ञान ध्यान गलतान । कानकँवर गण में लह्यो गुरु कृपा सम्मान । निमल नीति युत पालियो चरण रमण सुविलास । बाल्यकाल ब्रह्मचारिणी वर्षे गुण पचास । श्रुति स्वाध्याय विलासिनी ह्रसिनी-कर्मकठोर । विकथावाद विनासिनी आश्वासिनी मन मोर ।। अति सुखपूर्वक समालियो निजसंयम जीतव्य । वाह ! वाह सती महासती अवसर लह्यो ! अलभ्य ॥ वि० सं० १९९३ भाद्र पक्ष कृष्णा ५ को अत्यन्त समाधिस्थ अवस्था में राजलदेसर में आपका स्वर्गवास हुआ। ७. महासती झमकूजी-आपका जन्म-स्थान रतन नगर था। गर्भावस्था में माता को लक्ष्मी का स्वप्न दिखायी दिया। स्वप्न में ही माँ ने पूछ लिया-यह क्या ? उत्तर मिला-यह कन्या तेरे कूल की शृङ्गार बनेगी । अतुल स्नेह और वात्सल्य से पालन-पोषण हुआ। अल्पवय में पाणिग्रहण हो गया । ससुराल में जन-धन की वृद्धि होने से आपको लक्ष्मी के रूप में स्वीकार किया गया । योग्यता के कारण कुछ दायित्व तत्काल सौंप दिये । अचानक पति का वियोग हो गया। पुत्री के वैधव्य की बात सुन पिता तीन दिन मूच्छित रहे । स्वप्न में आवाज आयी-यह अप्रत्याशित दुःख इसके जीवन को अमरत्व प्रदान करेगा। एक बार स्वप्न में महासती ने आन से लदे हुए वृक्ष को देखा। मन में दीक्षा का संकल्प किया। माता-पिता का स्नेह और सास-ससुर का अनुराग उन्हें बाँध नहीं सका। दीक्षा से पूर्व पतिगृह की रखवाली का भार आप पर था। दीक्षा के समय आपके जेठ ने कहा-'जितना दुःख मेरे कनिष्ठ भ्राता की मत्य पर नहीं हआ उतना आज हो रहा है। मेरे घर की रखवाली अब कौन करेगा ?' ये उद्गार दायित्व के प्रति इनकी गहरी निष्ठा और कुशलता के परिचायक हैं। __ आपके मन में कला के प्रति सहज आकर्षण था। हर कार्य में स्फूर्ति । और विवेक सदा बना रहता था । १५ मिनट में चोलपट्टे को सीना, एक दिन में रजोहरण की २५ कलिकाओं को गूंथना स्फूर्ति के परिचायक हैं। गृहस्थ-जीवन में रहते हुए भो आपने अनेक साध्वियों को सूक्ष्म कला सिखायो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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