Book Title: Jain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Author(s): Hirabai Boradiya
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 363
________________ २९६ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं शान्ति, सरलता, विनम्रता की प्रतिमूर्ति थीं। मालवा, मेवाड़ आदि प्रान्त इनके विचरण स्थल रहे। सं० १९७९, श्रावण शुक्ल नवमी के दिन प्रतापगढ़ में संस्थारा द्वारा स्वर्गवासी हुई। इनकी तीन शिष्याएँ हुई(१) श्री मानकुँवरजी (३) श्री बरजूजी और (३) श्री अमृतकुँवरजी। साध्वो श्री इन्द्रकुंवरजी इनका जन्म मन्दसौर में सं० १९४२ में हआ था। इनकी माँ का नाम श्रीमती सरदार बाई और पिता का नाम श्री चम्पालालजी छाजेड़ था । १९ वर्ष की उम्र में, पौष वदी ४ सं० १९६० के दिन साध्वी श्रीकस्तुराजी की शिष्या बनीं और शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त किया। ये प्रकृति से शान्ति-प्रिय थीं। इनका विहार क्षेत्र मालवा, मध्य प्रदेश, विदर्भ और खानदेश रहा। ___ मध्यप्रदेश में इनका स्वर्गवास हो गया। इनकी एक शिष्या श्री दौलतकुँवरजी हुई। साध्वी श्री दौलतकुंवरजी इनका जन्म धार जिला के वड़का में कार्तिक वदी ११ ( एकादशी), सं० १९५८ में हुआ था। इनके माता-पिता का नाम क्रमशः श्रीमती रुक्मा बाई और श्री चुन्नीलालजी कंदोई था। इनका विवाह प्रतापगढ़ निवासी श्री कारूलाल कंदोई के साथ हआ था । मंदसौर में मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी, सं० १९९० में आनंदऋषिजी से दीक्षित होकर साध्वी श्री इन्द्रकुँवर की शिष्या बनी और हिन्दी के साथ-साथ शास्त्रीय ज्ञान भी प्राप्त किया। मालवा, बरार, मध्य प्रदेश, खानदेश आदि प्रान्त विहार क्षेत्र रहे । कार्तिक वदी चतुर्दशी, सं० २००० में यवतमाल में इनका स्वर्ग , वास हो गया। श्री हुलासकुँवरजी और श्री गुलाबकुंवरजी इनकी दो शिष्याएँ हुई। साध्वी श्रीअमृतकुंवरजी और उनकी परंपरा इनका जन्म प्रतापगढ़ में पौष शुक्ल दशमी, गुरुवार के दिन सं० १९५९ में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री बालचंदजी और माता का नाम सरसीबाई था। सं० १९७४ में श्री महावीर जयन्ती के दिन अपने पैतृक ग्राम में साध्वी श्री कासाजी से दीक्षित होकर साध्वी श्री जड़ावकुँवरजी की शिष्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .

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