Book Title: Jain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Author(s): Hirabai Boradiya
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 365
________________ स्थानकवासी पंजाबी सम्प्रदाय की प्रमुख साध्वियाँ* - साध्वी सरला जी. १. प्रवर्तनी महासती पार्वती देवी जन्म - आपका जन्म सं० १९९१ में आगरा के निकट एक गाँव मोड़पुरी में हुआ था । यह गाँव चौहानों का था । इनके पिता श्री बलदेव सिंह एक प्रतिष्ठित जमींदार थे और माता धनवंती देवी धार्मिक संस्कारों की महिला थीं । सुलक्षणों को देखते हुए बालिका का नाम पार्वती रखा गया । लड़की स्वभाव से शान्त, किन्तु तेजस्वी थी । उसकी बुद्धि तीक्ष्ण और हृदय सरल था । अध्ययन - पार्वती देवी के अध्ययन की उचित व्यवस्था के बारे में श्री बलदेव सिंह जी सोच हो रहे थे कि इसी बीच किसी मुकदमे के सिलसिले में उन्हें आगरा जाना पड़ा। मुकदमे के कारण वे काफी चिन्तित थे । उनके एक शुभचिन्तक ने उन्हें मुनि रत्नचन्द्र जी महाराज के दर्शन एवं उनके प्रवचन श्रवण की सलाह दी। इससे सचमुच श्री बलदेव सिंह जी को बड़ी शान्ति मिली और उन्होंने विचार किया कि इन्हीं ज्ञानी तपस्वी के सान्निध्य में कन्या पार्वती को शिक्षा दिलाई जाय । मुनि से प्रार्थना की तो वे तैयार हो गये और पार्वती आगरा में रहकर कँवरसेन जी महाराज: की देखरेख में अध्ययन करने लगी । महासती हीरादेवी की छत्रछाया में वह रहती और मुनिजनों के चरणों में बैठकर दिनभर अध्ययन करती थी । कुछ ही दिनों में उस विलक्षण प्रतिभाशाली बालिका ने अमरकोष, दशवै-कालिक और उत्तराध्ययनसूत्रादि कंठस्थ कर डाले । साथ ही पालि-प्राकृत,. हिन्दी, पंजाबी आदि भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया । वैराग्य - सत्संगति के प्रभाव से पार्वती के हृदय का स्वाभाविक वैराग्य क्रमशः पुष्ट होता गया और उसके मन में प्रव्रजित होने की उत्कंठा प्रबल होने लगी । जब उन्होंने यह प्रस्ताव अपने अभिभावकों के समक्ष प्रस्तुत किया तो वे लोग स्तब्ध रह गये । बहुत ऊँच-नीच समझाया किन्तु पार्वती अपने निश्चय पर अडिग रही । अन्ततः १३ वर्ष की अवस्था में * प्रस्तुत विवरण 'साधना पथ की अमर साधिका' नामक पुस्तक से संक्षिप्त करके लिया गया है | सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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