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२८८ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं नाम क्रमशः श्रीमती चन्दनबाई और श्री मेघराज जी नाबरिया था। इनका विवाह देरवाडी (नासिक) निवासी श्री दगडजी खिचसरा के साथ हुआ । २२ वर्ष की उम्र में संवत् १९३६ चैत्र शुक्ल १३ ( त्रयोदशी ) को साध्वी श्री हीराजी की शिष्या बनीं। शास्त्रीय ज्ञानों की अच्छी जानकारी रखती रखती थीं। सं० १९८३ मार्गशीर्ष शुक्ला ३ (तीज) गुरुवार को उपवास के साथ अहमदनगर में इनका स्वर्गवास हो गया। इनकी सात शिष्याएँ थीं
(१) श्री छोटाजी, (२) श्री सिरेकुंवरजी, (३) रायकुँवरजी, (४) श्री राधाजी, (५ ) श्री केसरजी, (६) श्री सायरकुँवरजी, और (७) श्री जडावकुँवरजी। साध्वी श्री हुलासवरजी
इनका जन्म संवत् १९६२ मार्गशीर्ष शुक्ल को गउरवेल (बीड मोगलाई ) में हुआ था। इनके माता-पिता का नाम क्रमशः श्रीमती छगनीबाई
और श्री रतनचन्दजी गुगलिया था। इनका विवाह सम्बन्ध हिंडरा (बीड़) निवासी रतनचन्दजी मुथा के साथ हुआ था । सं० १९८८ माघ शुक्ल १३ ( त्रयोदशी ) के दिन अहमदनगर में साध्वी श्री सिरेकुँवर से दीक्षित हुईं। साध्वी श्री रायकु वरजी ... इन्होंने साध्वी श्री नन्दजी से दीक्षा ग्रहण की थी । इनकी प्रवृत्ति नामस्मरण तथा तपश्चर्या में विशेष थी। ये ४३ दिन तक अनशन व्रत का पालन करती हुई सं० १९८५ चैत्र शुक्ल ४ ( चतुर्थी ) दिन सोमवार को दिन स्वर्गवासी हुई थी। साध्वी श्री राधाजी ___ साध्वी श्री नन्दूजी के उपदेश से दीक्षित हुईं । इनका स्वभाव विनम्र और सेवाभावी था। साध्वी श्री केशरजी
इनका जन्म सं० १९३१ में नारायणपुर ( पूना) में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री गेनमलजी दूगड़ और माता का नाम कुन्दनबाई था। इनका विवाह पूना निवासी श्री पेमराजजी पोखरणा के साथ हुआ था। ३२ वर्ष की अवस्था में सं० १९६३ माघ शुक्ल ३ (तीज) शनिवार के दिन अपने पैतृक ग्राम में ही साध्वी श्री नन्दूजी से दीक्षा ग्रहण की। सं० २०१२ में अनशन व्रत द्वारा स्वर्गवासी हुईं।
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