Book Title: Jain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Author(s): Hirabai Boradiya
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 358
________________ स्थानकवासी ऋषि सम्प्रदाय की साध्वियों का संक्षिप्त परिचय : २९१ अहमदाबाद, नासिक, खानदेश, बरार आदि क्षेत्र इनका विचरण स्थल रहा। ये बहुत ही प्रभावशाली साध्वी थीं। महात्मा गांधी आदि देश के प्रबुद्ध नेताओं से भी आपका विचार-विमर्श होता रहता था। इनकी चार प्रमुख शिष्याएँ हुईं-( १ ) श्री प्रभाकुंवर जी, (२) श्री सुगनकुंवर जी, (३) श्री विमलकुंवर जी, (४) श्री प्रमोदकुंवर जी। इनका शिष्या परिवार विशाल है और उसमें कई प्रबुद्ध साध्वियाँ भी हैं जिन्होंने एम० ए० और पी-एच० डी० स्तर तक अध्ययन किया है। साध्वी श्री लछमाजी इनका जन्मस्थल मन्दसौर (मालवा ) था और इनके पिता का नाम घनराज जी बीसा पोरवाड़ तथा माता का नाम श्रीमती गंगूबाई था। ये कुशलकंवर जी से दीक्षित होकर उन्हीं की शिष्या बनीं। इनको भगवतीसूत्र का अच्छा अध्ययन था। चौवालीस वर्ष तक संयम का पालन किया। प्रतापगढ़ में संथारा द्वारा अपना शरीरोत्सर्ग किया । इनकी निम्नलिखित शिष्याएँ थीं (१) श्री रुक्माजी, ( २ ) श्री हमीराजी, ( ३.) श्री देवकुंवर जी, ( ४ ) श्री रंभाजी, ( ५ ) श्री दयाकुंवरजी, (६) श्री जड़ावकुंवर जी, (७) श्री गेंदाजी, (८) श्री लाडूजी, (९) श्री बड़े हमीराजी और (१०) श्री सोनाजी। इनमें से निम्न की शिष्य परम्परा चली। साध्वी श्री देवकुवरजी ___ मालवा प्रान्त में पैदा होकर साध्वी श्री लछमाजी से दीक्षा अंगीकार की। शास्त्रीय ज्ञान अर्जित किया। संयम की आराधना करके स्वर्गवासी हुईं। श्री सरदारा जी नाम की इनकी एक शिष्या हुई। साध्वो श्री सरदाराजी इनका जन्म मालवा प्रान्त के इंगणोद ग्राम में माली बिरादरी में हुआ। साध्वी श्री देवकुवर जी से दीक्षित होकर उनकी शिष्या बनीं और शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त किया। इनकी श्री सुन्दरकुवर नाम की एक शिष्या हुई। साध्वी श्री गुलाबकुवरजो इनका जन्म सं० १९४८ में निनोर ( मालवा ) नामक स्थान में हुआ। इनके माता-पिता का नाम क्रमशः श्रीमती सरसाबाई और श्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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