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स्थानकवासी ऋषि सम्प्रदाय की साध्वियों का संक्षिप्त परिचय : २८९ साध्वी श्री सायरकुवरजी
इनका जन्म सं० १९५८ कार्तिक वदी १३ (त्रयोदशी ) के दिन जेतारण ( मारवाड़ ) निवासी श्रीमान् कुन्दनमलजी बोहरा की धर्मपत्नी श्रीमती श्रेयकुवर बाई की पुत्री के रूप में हुआ । इनका विवाह सिकन्दरा बाद के श्री सुगालचन्दजी मकोना के साथ हुआ। धर्म की ओर झुकाव होने के कारण सं० १९५१ फाल्गुन कृष्ण २ ( दूज ) बुधवार के दिन मिरि ( अहमद नगर ) में श्री अमोलक ऋषि से दीक्षित होकर साध्वी श्री नन्दजी की शिष्या बनीं। इन्हें धार्मिक ग्रन्थों का अच्छा अध्ययन था। इनकी छह शिष्याएँ हुईं
(१) श्री सोनाजी ( २) श्री सुमतिकुवरजी (३) श्री पदमकुंवरजी ( ४) श्री पारस कुंवरजी (५) श्री दर्शनकुंवरजी और (६) श्री इन्द्रकुवरजी। वर्तमान में श्री इन्द्रकुंवरजी की परम्परा चल रही है। साध्वी श्री हीराजी की शिष्या श्री चंपाजी
ये घोड़नदी ( पूना ) निवासी श्री गम्भीरमलजी लोढ़ा की धर्मपत्नी थीं । सं० १९३६ आषाढ़ शुक्ल ९ ( नवमी) के दिन श्री तिलोक ऋषिजी से पुत्री सहित दीक्षित होकर श्री हीराजी की शिष्या हुईं। सं० १९५१ भाद्र पद शुक्ल ३ (तीज) के दिन अनशनव्रत द्वारा स्वर्गवासी हुई । इनकी दो शिष्याएँ हुईं-(१) श्री छोटाजी एवं (२) श्री जमुनाजी। साध्वी श्री रामकुवरजी की शिष्या श्री चाँदकुंवरजी
इनका जन्म सं० १९५९ में सलबतपुर निवासी श्री भगवानदास जी फिरोदिया की धर्मपत्नी श्रीमती नानीबाई की पुत्री के रूप में हुआ था। सं० १९७२ माघ शुक्ल १३ ( त्रयोदसी) के दिन १३ वर्ष की वय में साध्वी श्री रामकुवरजी से दीक्षित हुईं। इनकी दो शिष्याएँ हुईं-(१) पुष्पकुंवरजी एवं ( २) श्री मनोहर कुंवरजी। साध्वी श्री भूराजी
ये सं० १९३७ को दीक्षा लेकर महासती श्री हीराजी की शिष्या बनीं और शास्त्रीय ज्ञानार्जन किया। सं० १९७९ पौष वदि १३ को इनका स्वर्गवास हो गया।
इनकी चार शिष्याएँ हुईं-(१) श्री रतनकुंवरजी (२) श्री जयकुंवरजी ( ३) श्री पानकुंवरजी और (४) श्री राजकुंवरजी ।
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