________________
स्थानकवासी ऋषि सम्प्रदाय को साध्वियों का संक्षिप्त परिचय : २८१ जाने पर ये रत्नऋषि जी के ज्ञानाभ्यास के लिए प्रेरणा-स्रोत रहीं । इनकी १३ शिष्याएँ थीं ।
साध्वी श्री सिरेकंवर जो
इनका जन्म सं० १९३५ में हुआ । इनकी माता का नाम सेरुबाई और पिता का नाम रामचन्द्र जी था । इनकी शादी श्री ताराचन्द जी से हुई थी लेकिन शीघ्र ही पति का स्वर्गवास हो गया । इन्होंने संवत् १९५४ आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी को रत्नऋषि जी से दीक्षा अंगीकार की थी । ये भद्र प्रकृति की विदुषी साध्वी थीं । ऋषि सम्प्रदाय द्वारा इनको सं० १९९१ चैत्र कृष्ण ७ को पूना में प्रवर्तिनी पद से अलंकृत किया गया था । इनका विचरण स्थल दक्षिण ही रहा । सं० २०२१ में घोड़नदी में इनका स्वर्गवास हो गया ।
साध्वी श्री सायरकंवर जी
इनका जन्म जेतारण ( मारवाड़ ) निवासी श्री कुन्दमल जी बोहरा की धर्मपत्नी श्रीमती श्रेयकंवर जी की कुक्षि से सं० १९५८ कार्तिक वदी १३ को हुआ था । इनका विवाह सिकन्द्राबाद निवासी श्री सुगालचन्द जी के साथ हुआ । इन्होंने ३२ वर्ष की वय में सं० १९८१ फाल्गुन कृष्ण २ को मिरी में श्री अमोलक ऋषि से दीक्षा ली और साध्वी श्री. नन्द जी की निश्रा में शिष्या हुईं ।
• इनका विहार क्षेत्र दक्षिण तथा मद्रास रहा । इनके सदुपदेश से अनेक धार्मिक एवं शैक्षणिक संस्थाओं का निर्माण हुआ । सं० २००१ में इनको मुनिश्री कल्याणऋषिजी की उपस्थिति में प्रवर्तिनी पद से अलंकृत किया गया ।
साध्वी श्री रामकंवर जी
इनके पिता घोड़नदी (पूना) निवासी श्री गम्भीरमल जी लोढ़ा थे । माता का नाम चम्पाबाई था । इनका लौकिक नाम छोटीबाई था । अठारह वर्ष की उम्र में पति के स्वर्गवासी हो जाने पर माता-पिता ने इन्हें संयम मार्ग की ओर अग्रसर किया । सं० १९३६ आषाढ़ शु० १ को माता सहित दीक्षा ग्रहण कर साध्वी हीरा जी की शिष्या हुईं। इनका स्वभाव नम्र और सेवाभावी था । इन्होंने अनेक शास्त्रों का अध्ययन किया ।
५३ वर्ष संयमी जीवन बिताकर अपने गृहनगर घोडनदी में संवत् १९८९ कार्तिक कृष्णा २ को मध्य रात्रि के बाद अनशन द्वारा भौतिक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org