________________
१६८ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएँ
पल्लविया :
गंगराज्य के महामंत्री चामुण्डराय की लघु भगिनी पल्लविया भी जैन धर्म में दृढ़ आस्था रखती थी। इस धर्मप्राण महिला ने लघु वय में ही सांसारिक सुख-समृद्धि को त्यागकर आर्यिका व्रत ग्रहण किया था । कठिन नियमों का पालन करती हुई, तप, संयम तथा स्वाध्याय से आत्मकल्याण करती हुई, अन्त में सल्लेखना व्रत ग्रहण कर इन्होंने चन्द्रनाथ वसति में अपने प्राण त्यागे ।
कुन्दाच्चि ( कदाच्छिका) :
गंग नरेश श्रीपुरुष ( ई० सन् ७२६ से ७७६ ) के राज्यकाल में श्रीपुर की उत्तर दिशा में 'लोकतिलक' नामक जिनालय का निर्माण कुन्दाच्चि नामक राजमहिला ने कराया था। इनकी माता पल्लवराज की प्रिय पुत्री तथा पिता सगरकुल- तिलक मरुवर्मा थे । आपका विवाह परमगुल के साथ हुआ था । इस जिनालय को रानी की प्रेरणा से समस्त करों से मुक्त करके पोन्नलि नामक संपूर्ण ग्राम तथा और बहुत सी भूमि प्रदान की गई थी ।
सावियव्बे :
यह वीर महिला - रत्न पराक्रमी वीर बायिक तथा उसकी धर्मपत्नी जाब की पुत्री थी और उदय विद्याधर की (अपरनाम वद्देग) की भार्या थी । एक समय राजा रक्कसगंग के राज्यकाल में यह वीरांगना अपने पति के साथ 'बगेपुर' के युद्ध में गई थी, वहाँ रणभूमि में युद्ध करते हुए ही उसने वीरगति पायी थी । श्रवणबेलगोल के एक पाषाण पर इस युद्धप्रिय महिला की वीरगति लेखांकित है । लेख के ऊपर एक दृश्य है जिसमें यह वीर नारी घोड़े पर सवार है और हाथ में तलवार उठाये हुए अपने सम्मुख एक गजारूढ़ योद्धा पर प्रहार कर रही है । लेख में इस महिला रत्न को रेवती - रानी जैसी पक्की श्राविका, सीता जैसी पतिव्रता, देवकी
१. डॉ० सोलेतर - विजयनगर का इतिहास - पृ० १६८
२. (क) डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन - प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँपृ० ७५
(ख) ब्र० पं० चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० ४७७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org