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२५० : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएँ और वहीं शिवजीरामजी महाराज की छतरी के पास आपकी छतरी बनाकर चरण पादुका स्थापित की गई। (४) प्रवर्तिनी सुवर्णश्रीजी
प्रवर्तिनी पुण्यश्रीजी के स्वर्गवास के पश्चात् उन्हीं के निर्देशानुसार प्रवर्तिनी सुवर्णश्रीजी हुईं। ये अहमदनगर निवासी सेठ योगीदासजी बोहरा की पुत्री थीं। माता का नाम दुर्गादेवी था। इनका जन्म सम्वत् १९२७ ज्येष्ठ बदी १२ के दिन हुआ था । सुन्दरबाई नाम रखा गया था। ११ वर्ष की अवस्था में संवत् १९३८ माघ सुदी ३ के दिन नागौर निवासी प्रतापचन्दजी भंडारी के साथ इनका शुभ विवाह हुआ। सम्वत् १९४५ में पुण्यश्रीजी के सम्पर्क से वैराग्यभावना जागृत हुई । बड़ी कठिनता से अपने पति से दीक्षा की आज्ञा प्राप्त कर संवत् १९४६ मिगसर सुदी ५ को दीक्षा ग्रहण कर केसरश्रीजी की शिष्या बनीं। साध्वी जीवन में नाम रखा गया सुवर्णश्री।
पुण्यश्रीजी का इन पर अत्यधिक स्नेह था । स्वर्गवास के पूर्व इन्हीं को गणनायिका के पद पर घोषित किया था। सम्वत् १९७६ से सुवर्णश्रीजी ने प्रवर्तिनी पद का भार कुशलता के साथ निर्वाह किया। इनकी स्वयं की १८ शिष्याएँ थीं। (५) प्रवतिनी ज्ञानश्रीजी
प्रवर्तिनी स्वर्णश्रीजी के स्वर्गवास के पश्चात् ज्ञानश्रीजी प्रवर्तिनी हुईं। इनका जन्म सम्वत् १९४२ कार्तिक बदी १३ के दिन फलोदी में हआ था। इनका नाम था गीताकुमारी। केवलचंदजी गोलेछा की ये सपत्री थीं। मारवाड़ की पुरानी परम्परा के अनुसार गीता/गीथा का विवाह नौ वर्ष की अवस्था में ही भौमचन्दजी वेद के साथ कर दिया था। दुर्भाग्य से एक वर्ष में ही भीकमचन्दजी वेद का स्वर्गवास हो गया और आप बालविधवा हो गई। साध्वी रत्नश्रीजी के सम्पर्क से वैराग्य का बीज पनपा
और आखिर में सम्वत् १९५५ पौष सुदी ७ को गणनायक भगवानसागरजी, तपस्वी छगनसागरजी, त्रैलोक्यसागरजी की उपस्थिति में फलोदी में ही इनकी दीक्षा हुई। पुण्यश्रीजी की शिष्या घोषित कर ज्ञानश्री नामकरण. किया गया। (६) उपयोगश्रीजी ___ आप फलोदी निवासी कन्हैयालालजी गोलेछा की पुत्री थीं। केसरबाई नाम था । इनका विवाह गुजराजजी वरड़िया के साथ हुआ था। छोटी
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