Book Title: Jain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Author(s): Hirabai Boradiya
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 333
________________ २६६ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियों एवं महिलाएँ साध्वी नजरकंवरजी नजर कुँवरजी एक विदुषी साध्वी थीं। इनकी जन्मस्थली उदयपुर राज्य के वल्लभनगर के सन्निकट मेनार गाँव थी । आप जाति से ब्राह्मण थीं । आपकी पाँच शिष्याओं के नाम इस प्रकार हैं- रूपकुँवरजी - ये उदयपुर के सन्निकट देलवाड़ा ग्राम की निवासिनी थीं । साध्वी प्रताप-कुँवरजी - ये भी उदयपुर राज्य के वीरपुरा ग्राम की थीं। साध्वी पाट्जीये समदड़ी ( राज्यस्थान ) की थीं। इनके पति का नाम गोडाजी लुंकड था । इनकी दीक्षा वि० सं० १९७८ में हुई । चौथाजी - इनकी जन्मस्थली उदयपुर राज्य के बंबोरा गाँव में थी और इनकी ससुराल वाटी ग्राम में थी । महासती एजाजी - आपका जन्म उदयपुर राज्य के शिशोदे ग्राम में हुआ, आपके पिता का नाम भेरूलालजी और माता का नाम कत्थूबाई था । आपका पाणिग्रहण वारी ( मेवाड़ ) में हुआ और वहीं पर महासतीजी के उपदेश से प्रभावित होकर दीक्षा ग्रहण की। वर्तमान में इनमें से चार साध्वियों का स्वर्गवास हो गया तथा एजाजी जीवित हैं किन्तु इनकी कोई शिष्या नहीं है, इस प्रकार यह परम्परा यहाँ तक रही है । महासती गुमानाजी महासती श्री नवलाजी की द्वितीय शिष्या गुमानाजी थीं। उनकी शिष्या परम्परा में बड़ी आनन्दकुँवर विदुषी थीं । वे बहुत प्रभावशाली थीं। उनकी प्रधान शिष्या बालब्रह्मचारिणी अभयकुँबर हुईं। साध्वी अभयकुँवर आपका जन्म वि० सं० १९५२ फाल्गुन वदी १२ मंगलवार को राजवी के बाटेला गाँव में हुआ । आपकी माता का नाम हेमकुँवर था । कालांतर में आनन्दकुँवरजी के उपदेश से प्रभावित होकर वि० सं० १९६० में पालीमारवाड़ में दीक्षा ग्रहण की। आपका शास्त्र ज्ञान गंभीर था । जीवन की सान्ध्यबेला में नेत्र ज्योति चली जाने से आप मेवाड़ ( भीम ) में स्थिरवास रहीं और वि० सं० २०३३ में संथारापूर्वक स्वर्गवास हुआ । आपकी दो शिष्यायें हुईं — बदामकुंवरजी तथा जसकुँवरजी । साध्वी बदामकुँवर बदामकुँवर का जन्म वि० सं० १९६१ को भीम गाँव में हुआ । आपका पाणिग्रहण भी वहीं हुआ । वि० सं० १९७८ में आपने महासती अभय-कँवर के पास दीक्षा ग्रहण की। आपका स्वर्गवास भीम ग्राम में सं० २०३३. हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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