Book Title: Jain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Author(s): Hirabai Boradiya
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 340
________________ स्थानकवासी आचार्य अमरसिंहजी की परम्परा की जैन साध्वियां : २७३ महासती सूरजकुंवरजी ___इनकी जन्मस्थली उदयपुर थी। आपका पाणिग्रहण साडोल ( मेवाड़) के हनोत परिवार में हुआ था । महासतीजी के उपदेश से प्रभावित होकर आपने साधनामार्ग स्वीकार किया । आपकी कितनी शिष्याएं हुई यह ज्ञात नहीं है। साध्वी फूलकुँवरजी आपकी जन्मस्थली भी उदयपुर थी। आंचलिया परिवार में आपका पाणिग्रहण हुआ था । महासती के पावन प्रवचनों से प्रभावित होकर श्रमणीधर्म स्वीकार किया, आपकी कितनी शिष्याएँ हुई ज्ञात नहीं है। साध्वी हुल्लासकुँवरजी आपकी जन्मस्थली भी उदयपुर थी । आपका पाणिग्रहण हरखावत परिवार में हुआ था । आपने भी महासती के उपदेश से प्रभावित होकर संयम धर्म ग्रहण किया था। आपके उपदेश से प्रभावित होकर पाँच शिष्याएं बनीं जिनका परिचय निम्नवत् हैसाध्वी देवकुँवरजी ... आपका जन्म कर्णपुर के पोरवाड परिवार में हुआ था तथा विवाह उदयपुर के पोरवाड परिवार में हुआ था। साध्वी प्यारकुंवरजी आपका जन्म बाजेंडा तथा विवाह डबोक में हुआ था। साध्वी पदमकुंवरजी आपका जन्म उयदपुर के सन्निकट थामला के सियार परिवार में हुआ था और पाणिग्रहण डबोक के झगड़ावत परिवार में हुआ था । आपकी प्रमुख शिष्या कैलाशकुँवरजी थीं। साध्वी कैलाशकुवरजी आपकी जन्मस्थली उदयपुर थो। आपके पिता का नाम हीरालाल और माता का नाम इन्दिराबाई था। आपका पाणिग्रहण गणेशीलालजी . के साथ हुआ था । सं० १९९३ में आपने देलवाड़ा में दीक्षा ग्रहण की। आपकी चरित्र-वाचन की शैली बहुत ही सुन्दर थी। सं० २०३२ में आपका अजमेर में संथारा सहित स्वर्गवास हुआ। आपकी एक शिष्या हुई जिनका नाम रतनकुँवरजी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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