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२७४ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं
साध्वी सौभाग्यकुंवरजी __ आपकी जन्मस्थली उदयपुर थी । आपके पिता का नाम मोडीलालजी खोखावत और माता का नाम रूपाबाई था। आपका स्वभाव मधुर है। आपकी शिष्या मोहनकुंवरजी हुईं जिनका जन्म दरीबा ( मेवाड़ ) में हुआ और पाणिग्रहण डबोक ग्राम में हुआ । वि० सं० २००६ में आपने दीक्षा ग्रहण की और सं० २०३१ में आपका उदयपुर में स्वर्गवास हुआ।
महासती हुल्लासकुँवरजी की पाँचवी शिष्या चतुरकुंवरजी हैं जो बहुत ही सेवापरायणा साध्वी हैं। साध्वी हुकुमकुवरजी ___महासती रायकुंवरजी की चतुर्थ शिष्या हुकुमकुँवरजी थीं उनकी सात शिष्याएँ हुईं, जिनका उल्लेख अग्रलिखित है । साध्वी भूरकुंवरजी
आपका जन्म उदयपुर राज्य के कविता नामक ग्राम में हुआ था। आपको थोकड़े । साहित्य ) का अच्छा ज्ञान था । पचहत्तर वर्ष की उम्र में आपका स्वर्गवास हुआ। आपकी एक शिष्या हुई जिनका नाम प्रतापकँवरजी था। साध्वी रूपकुवरजी
हुकुमजी की दूसरी शिष्या रूपकुँवर थीं । आपकी जन्मस्थली देवास ( मेवाड़ ) थी । लोढा परिवार में आपका पाणिग्रहण हुआ था। आपने महासती के पास दीक्षा ग्रहण कर वर्षों तक संयम का पालन किया, अन्त में आपका उदयपुर में स्वर्गवास हुआ । साध्वी बल्लभकुवरजी
हुकुमकुँवरजी की तृतीय शिष्या बल्लभकँवर थीं। आपका जन्म उदयपुर के बाफना परिवार में हुआ था और आपका पाणिग्रहण उदयपुर के गेलडा परिवार में हुआ था । आपने दीक्षा ग्रहण कर आगम शास्त्र का अच्छा अभ्यास किया। आपकी एक शिष्या हुईं जिनका नाम महासती गुलाबकँवरजी था। गुलाबकँवरजी का जन्म 'गुलुंडिया' परिवार में हआ था और पाणिग्रहण 'वया' परिवार में हुआ था । आपको आगम व स्तोक साहित्य का सम्यक् ज्ञान था। आपका स्वर्गवास संथारा विधिपूर्वक उदयपुर में हुआ।
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