Book Title: Jain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Author(s): Hirabai Boradiya
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 338
________________ स्थानकवासी आचार्य अमरसिंहजी की परम्परा की जैन साध्वियाँ : २७१ जीवन में घटित हुई किन्तु इन्होंने प्रत्येक दशा में अपने शील को सुरक्षित रखते हुए निडरता पूर्वक सामना किया। लाभकुंवरजी की अनेक शिष्याओं में एक शिष्या छोटे आनन्द कुंवरजी प्रमुख थीं। साध्वी छोटे आनन्दकुवरजी आपकी जन्मस्थली उदयपुर राज्य के कमोल ग्राम में थी । ये बहुत ही मधुरभाषिणी थीं । आपके जीवन में त्याग की प्रधानता थी, इसलिए इनके प्रवचनों का असर जनता के अन्तमानस पर सीधा होता था। आपकी अनेक शिष्याएं हुई जिनमें मोहनकुंवरजी और लहरकुवरजी का यहाँ संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है। साध्वी मोहनकुवरजो आपका जन्म उदयपुर राज्य के भूताला ग्राम में हुआ था। आपका गृहस्थाश्रम का नाम मोहनबाई था। जाति से आप ब्राह्मण थीं। नौ वर्ष की लघुवय में आपका पाणिग्रहण हो गया। एक बार तीर्थयात्रा के दौरान नर्मदा नदी में स्नान कर रहे आपके पति की पानी में बह जाने से मृत्यु हो गई । विधवा जीवन जी रही मोहनबाई महासती आनन्दकुँवर के उपदेशों से अतिप्रभावित हुई। वैराग्य भावना के वशीभूत हो जब इन्होंने दीक्षा ग्रहण करने का संकल्प किया, तब परिवारजनों की ओर से अत्यधिक रुकावटें डाली गई। किन्तु दढ़ वैराग्य भावना के आगे सबको झकना पड़ा और इन्होंने १६ वर्ष की आयु में आर्हती दीक्षा ग्रहण की । ३२ वर्ष की आयु में संथारा विधिपूर्वक देह का त्याग किया। साध्वी लहरकुंवरजी आपका जन्म उदयपुर राज्य के सलोदा ग्राम में हुआ और पाणिग्रहण भी सरोदा में ही हुआ । लघुवय में पति का देहान्त हो जाने से आप महासती आनन्दकुंवरजी के पास दीक्षा ग्रहण की। आपने आगम साहित्य का अच्छा अभ्यास किया। एक बार सायरा ग्राम में श्वेतांबर मूर्तिपूजक और तेरापंथ की सतियों के साथ आपका शास्त्रार्थ हआ जिसमें आपने अपने अकाट्य तर्कों से उन्हें परास्त किया। सं० २००७ में आपका वर्षावास यशवन्तगढ़ ( मेवाड़ ) में था। शरीर में व्याधि उत्पन्न हुई और संथारे के साथ आपका स्वर्गवास हुआ। आपकी दो शिष्याएं हुई-(१) सज्जनकुंवरजी और (२) कंचनकुंवरजी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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