Book Title: Jain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Author(s): Hirabai Boradiya
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 337
________________ २७० : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं खाखड़ निवासी धनराजजी के साथ आपका पाणिग्रहण हुआ था। आपके दो पुत्रियाँ हुईं। बड़ी पुत्री भूरबाई का पाणिग्रहण उदयपुर निवासी चन्दनमलजी कर्णपुरियाके साथ हुआ। कुछ समय पश्चात् पति का निधन होने पर आप उदयपुर में अपना पुत्री के साथ रहने लगीं। महासती धूलकुंवरजी के उपदेश को सुनकर वैराग्य भावना जागृत हुई। अपनी लघु पुत्री अचरजबाई के साथ वि० सं० १९८२ में खाखड़ ग्राम में दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के उपरान्त पुत्री का नाम शीलकुंवरजी रखा गया। आपको थोकड़ों का तथा आगम साहित्य का अच्छा परिज्ञान था। आपका स्वर्गवास वि० सं० २०२३ में संथारापूर्वक हुआ। इसी परम्परा में परम विदुषी महासती श्री शीलकुवरजी हुई । उनकी प्रमुख शिष्याएँ मोहनकुंवरजी, सायरकुंवरजी, चन्दनबालाजी, चेलनाजी, साधनाकुवरजी, विनयप्रभाजी आदि हुई। साध्वी जसाजी ___ महासती नवलाजी की चतुर्थ शिष्या जसाजी हुई। उनके जन्म आदि वृत्त के सम्बन्ध में सामग्री प्राप्त नहीं हो सकी है। उनकी शिष्या-परम्पराओं में लाभकुंवरजी थीं। साध्वी लाभकुवरजी आपका जन्म उदयपुर राज्य के कंबोल ग्राम में हुआ था । इन्होंने लघुवय में दीक्षा ग्रहण की। ये बहुत ही निर्भीक वीरांगना थीं। एक बार अपनी शिष्याओं के साथ खामनेर ग्राम से सेमल गाँव जा रही थीं। रास्ते में सशस्त्र डाक आपको लटने के लिए आ पहँचे । अन्य साध्वियाँ अत्यधिक भयभीत हो गई किन्तु लाभकुवरजी ने आगे बढ़कर कहा-तुम वीर हो ! क्या अपनी बह-बेटी साध्वियों पर हाथ उठाना तुम्हारी वीरता के अनुकूल है ? तुम्हें शर्म आनी चाहिए, इस वीरभूमि में तुम साध्वियों के वस्त्रादि लेने पर उतारू हो रहे हो। क्या तुम्हारा क्षात्रतेज तुम्हें यही सिखाता है ? इस प्रकार महासती के निर्भिकतापूर्वक वचनों को सुनकर डाकुओं के दिल परिवर्तित हो गये। वे महासती के चरणों में गिर पड़े और उन्होंने प्रतिज्ञा की कि हम भविष्य में किसी बहन या माँ पर हाथ नहीं उठायेंगे और न बालकों पर। डाका डालना तो हम नहीं छोड़ सकते, पर इस नियम का हम दृढ़ता से पालन करेंगे। इसी प्रकार की अन्य कई महत्त्वपूर्ण घटनाएँ साध्वीजी के साधनामय For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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