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खरतरगच्छीय प्रवर्तिनी सिंहश्रीजी म० के साध्वी-समुदाय का परिचय : २५९ सेवाभाव, संयमनिष्ठा, निस्पृहता आदि अलौकिक गुणों ने आपको ज्ञानी, प्रखर-व्याख्यात्री, विशुद्ध-संयमी एवं ध्यानी बना दिया।
वि० सं० २०१० की भादवा सु० १५ को अनिच्छा से आपको प्रवर्तिनी पद से विभूषित किया गया। अपने पूर्व संकेतानुसार आ० कृ० १३ को मानो वस्त्र परिवर्तन कर रही हों, इस तरह पूर्ण तैयारीपूर्वक हँसते-हँसते मृत्यु का वरण किया। आपने गच्छ व शासन को १७ विदुषी, विशुद्धसंयमी, शासन-प्रभाविका, प्रखर व्याख्यात्री शिष्याओं की अपूर्व भेंट दी। जिनके द्वारा की गई शासन सेवा एवं वर्तमान में २५ प्रशिष्याओं द्वारा हो रही शासनसेवा के लिये गच्छ को बड़ा गौरव है। आपके यशश्रीजी म०, शान्तिश्रीजी म०, क्षमाश्रीजी म०, अनुभवश्रीजी म०, शुभश्रीजी म०, तेजश्रीजी म० आदि अनेक शिष्यायें हुईं। वर्तमान में साध्वीश्री विनोदश्रीजी म०, प्रियदर्शनाश्रीजी म०, विकासश्रीजी म०, हेमप्रभाश्रीजी, सुलोचनाश्रीजी म० आदि विचरण कर रही हैं। ज्ञानश्रीजी
आप लोहावट निवासी पारख गोत्रीय मुकनचन्दजी एवं कस्तूरदेवी की सुपुत्री थीं। आपका जन्म वि० सं० १९२८ की श्रावण शुक्ला ३ को हआ था। आपका नाम जड़ाव था। वास्तव में आपका जीवन सुसंस्कार एवं सद्गुणों से जड़ा हुआ था । आपका विवाह लोहावट में ही लक्ष्मीचन्द जी सा० चौपड़ा के साथ हुआ। किन्तु काल ने १२ वर्ष की अल्प अवधि में ही संस्कारो युगल को वियुक्त कर दिया। जड़ावबाई विधवा हो गई। पतिवियोग की व्यथा उनकी आत्मोन्नति में प्रेरक बनी । इसे सफल बनाने का काम किया पू० श्रीसिंहश्रीजी म. के सदुपदेशों ने। ५ वर्ष के अथक प्रयास से आखिर सफलता मिली और वि० सं० १९६१ की मार्गशीर्ष शक्ला पंचमी के दिन दीक्षा ग्रहण की। ज्ञानश्रीजी के नाम से प्रसिद्ध हई। बडी उम्र में दीक्षा लेकर भी आपकी पढ़ने की रुचि अद्वितीय थी। यही कारण है कि आपने बड़ी उम्र में अच्छा अध्ययन किया । आपकी ज्ञानरुचि ने ही लोहावट फलोदी आदि में कन्या पाठशाला खुलवाई। आपके उपदेश से खीचन, जैसलमेर का संघ निकला। वल्लभश्रीजी म० जैसी महान् साध्वी-रत्न आपकी ही देन है। धर्मशालाओं का निर्माण हुआ। १९९६ वै० सु० १३ को फलोदी में आप समाधिपूर्वक दिवंगत हुई। आप १३ सुयोग्य शिष्याओं की गुरुणी थीं। प० पू० शासन दीपिका मनोहरश्रीजी म० सा० आपकी ही प्रशिष्या है ।
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