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दिगम्बर सम्प्रदाय की अर्वाचीन आयिकायें : २२१ दिन मुजफ्फरनगर में आचार्य धर्मसागर से आर्यिका के महाव्रत ग्रहण किये किन्तु अशुभ कर्मों की बलवत्ता के कारण बहुत बीमार रहने लगी तब १०८ मुनिश्री विद्यानन्द ने आपको क्षुल्लिका के व्रत पालन की आज्ञा दी। तब से क्षु० के रूप में धर्माराधन कर रही हैं। क्षुल्लिका पद्मश्री जी
स्वाध्याय जप तप और वैयावृत्ति में ही जीवन व्यतीत करने वाली आप (क्षु० पद्मश्री) का बाल्यावस्था का नाम सीधारबाई था । सीधारबाई के पिता का नाम श्री पूनमचन्द्र, माता का नाम श्रीमती रूपीबाई था। विवाह श्री दीपचन्द्र जी के साथ हुआ था और एक पुत्र को भी जन्म दिया था । संसार से विरक्ति होने के कारण दूसरी प्रतिमा मुनिश्री शान्तिसागर से, सातवी प्रतिमा आ० महावीरकीर्ति जी से एवं आचार्य विमलसागर से फाल्गुन शुक्ल १४ के शुभ दिन पारसोला (प्रतापगढ़) नामक अपने जन्म स्थान से क्षुल्लिका के व्रत के साथ पद्मश्री संज्ञा को प्राप्त किया। आयिका ब्रह्ममती जी - संयम के अभाव में मनुष्य का ज्ञान अथवा धन-सम्पत्ति उसके लिए लाभप्रद नहीं है। इसका विचार कर श्राणी जिला उदयपुर (राजस्थान) निवासी श्री होम जी एवं श्रीमती चम्पाबाई की सुपुत्री शक्कर बाई ने आर्यिका शान्तिमती के सदूपदेश से संयम लेने का नियम लिया। शक्कर बाई का दोषी (दसा ऊमड्ड) जाति के श्री कुरीसन जी के साथ विवाह हआ। संयम के नियम के फलस्वरूप श्रावण की पूर्णिमा (रक्षा बन्धन) १९७१ के शुभ दिन राजगृही पावन क्षेत्र पर आचार्य श्री विमलसागर महाराज से सीधे आर्यिका दीक्षा ग्रहण की। देश संयम का परिपालन करती हुई आप आ० ब्रह्ममती जी धर्माराधन में समय बिता रही हैं। आयिका भद्रमती जी
पुत्रीबाई का जन्म कुण्डलपुर के समीपस्थ कुहनारी (दमोह), म० प्र० में हुआ था। पिता का नाम श्री परमलाल जैन एवं माता का नाम हीराबाई था। विवाह के १ वर्ष बाद ही आपको वैधव्य की विडम्बना ने आ घेरा । आर्यिका वासुमती जी की सत्संगति से एवं जग की असारता का ज्ञान होने से पुत्तीबाई की वैराग्य भावना जाग उठी। विक्रम संवत् २०२० में खुरई के भव्य समारोह के मध्य आचार्य धर्मसागर जी से क्षुल्लिका के व्रत ले लिए । अनन्तर वि० सं० २०२३ में उन्हीं आचार्यप्रवर से आर्यिका
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