Book Title: Jain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Author(s): Hirabai Boradiya
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 297
________________ २३० : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएँ दीक्षा के अनन्तर श्रेयांसमती नाम के साथ महाव्रतों को धारण कर श्रेयमार्ग पर आरूढ हैं। आर्यिका श्रेष्ठमती जी ___ जब तक विषयभोगों में आसक्ति रहती है तब तक स्वयं को जानना कठिन है । आत्मस्वरूप के जानने की इच्छुक श्रीमती रतनबाई ने विषयभोगों को तिलाञ्जलि दे दी । इनका जन्म फतेहपुर ( सीकरी) राजस्थान निवासी श्री वासुदेवजी एवं श्रीमती इन्द्रा देवी के परिवार में हुआ था। परिवार में दो भाई एवं दो बहिन हैं । विवाह श्री नेमिचन्द्र जैन के साथ हुआ, किन्तु आपके नगर में शिवसागर महाराज का संघ पहँचा, जिससे आपकी वैराग्य प्रवृत्ति जाग उठी। वि० सं० २०१९ में १०८ आचार्य शिवसागर महाराज से क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण कर आर्यिका जानमती के सान्निध्य में धार्मिक ज्ञान बढ़ाती रहीं। अनन्तर आर्यिका दीक्षा ग्रहण कर श्रेष्ठमती नामकरण के साथ श्रेष्ठ चारित्र में चरण कर रही हैं। चारित्र शुद्धि व्रत के उपवास करती हैं जिससे बाह्य जगत् से पूर्ण अनासक्त रहती हैं। आयिका संयममती जी ___ आप दिल्ली पहाड़ीधीरज की रहने वाली थीं। गृहस्थावस्था का नाम मनभरी था । सन् १९७२ में पू० आयिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से दिल्ली में आ० देशभूषण महाराज से क्षुल्लिका दीक्षा धारण कर मनोवती नाम प्राप्त किया और सन् १९७४ निर्वाणोत्सव पर आ० धर्मसागर के करकमलों से दिल्ली में ही आर्यिका दीक्षा धारण कर संयममती संज्ञा प्राप्त कर आत्मसाधना करते हुए धर्म की प्रभावना कर रही हैं। क्षुल्लिका संयममती जी १०५ क्षुल्लिका संयममतीजी का जन्म नाम सीताबाई था। आपका जन्म वि०सं० १९८७ में निवारी (भिण्ड), म०प्र० में हुआ था। आपके पिता श्री सनोखनलालजी एवं माता श्रीमती लठैताबाई थों। आप गोलालारीय जाति की भूषण हैं। लौकिक शिक्षण साधारण है। सं० २००० में शादी हुई। सुखमय जीवन व्यतीत कर रही थीं किन्तु वैराग्य भावना जागृत हो गयी। वैराग्य भावना आचार्य विमलसागर की संगति से बढ़ी थी अतएव इन्हीं से वि० सं० २०२६ में सुजानगढ़ में क्षुल्लिका के व्रत ग्रहण कर लिए। आप णमोकार मंत्र में बड़ी आस्था रखती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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