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२४० : जैनधर्मं की प्रमुख साध्वियाँ एवं महिलाएँ
विद्यानुरागी आचार्य थे, इसीलिए उन्होंने अपने गच्छ के साधु-साध्वियों की शिक्षा पर अत्यधिक बल दिया । श्रीमति, जिनमति और पूर्व श्री इन तीन साध्वियों को अन्य स्वगच्छीय मुनियों के साथ उन्होंने अध्ययनार्थ धारा नगरी भेजा था ।" उनकी ही शिष्या गणिनी शांतिमति ने वि० सं० १२१५ में प्रकरण संग्रह की प्रतिलिपि की, जो जैसलमेर ग्रन्थ भण्डार में सुरक्षित है ।
आचार्य जिनदत्तसूरि के स्वर्गारोहण के पश्चात् मणिधारी जिनचन्द्र-सूरि खरतरगच्छ के नायक बने । इनके अल्पकाल के नायकत्व में भी खरतरगच्छ में अनेक साधु-साध्वियों क दीक्षा हुई । वि० सम्वत् १२१४ में इन्होंने त्रिभुवनगिरि में शान्तिनाथ जिनालय पर भव्य महोत्सव के साथ सुवर्णध्वज और कलश का आरोपण किया और साध्वी हेमादेवी को प्रवर्तिनी पद से विभूषित किया 13 वि० सं० १२१८ में उच्चानगरी में उन्होंने ५ मुनियों के साथ जगश्री, गुणश्री और सरस्वती को साध्वी दीक्षा प्रदान की । ४ वि० सं० १२२९ में आचार्यश्री ने देवभद्र और उसकी पत्नी को अन्य ४ साधुओं के साथ दीक्षित किया ।" वि० सं० १२२३ भाद्रपद वदी चतुर्दशी को दिल्ली में आचार्यश्री का स्वर्गवास हो गया, तत्पश्चात् आचार्य जिनपतिसूरि को उनके पट्ट पर प्रतिष्ठित किया गया । जिन्स्पतिसूरि ने वि० सं० १२२७ में उच्चानगरी में धर्मशील और उसकी माता को ५ अन्य व्यक्तियों के साथ दीक्षित किया । इसके पश्चात् वे विहार करते हुए मरुकोट पधारे, जहाँ अजितश्री ने उनसे प्रव्रज्या ली वि० सं० १२२९ में फलवधिका में अभयमति, आसमति और श्रीदेवी ने उनसे साध्वीदीक्षा.. प्राप्त की । यहीं वि० सं० १२३४ मे साध्वी गुणश्री को महत्तरा पद और जगदेवी को साध्वी दीक्षा दी। इसी नगरी में वि० सं० १२४१ में धर्मश्री और धर्मदेवी को उन्होंने श्रमणी संघ में सम्मिलित किया ।" वि० सं० १२४५ में पुष्करणी नगरी में संयमश्री, शान्तमति एवं रत्नमति को साध्वी दीक्षा दी गयी । १ वि० सं० १२५४ में धारा नगरी में उन्होंने
१. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली पृ० १८
२. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली पृ० १८ ३. श्री जैसलमेर दुर्गस्थ जैन ताड़पत्रीय ग्रन्थ भण्डार सूची- पत्र, संपा० मुनिपुण्यविजय, क्रमांक १५४ पृ० ५१-५२ । ४. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली पृ० २० ६. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली पृ० २० ८. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली पृ० २३ १०. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली पृ० २४
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५. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली पृ० २० ७. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली पृ० २३ ९. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली पृ० २४ ११. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली पृ० ३४
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