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खरतरगच्छीय साध्वी परम्परा और समकालीन साध्वियां : २४३ की प्रव्रज्या हुई।' इसी वर्ष विक्रमपुर में ही मार्गशीर्ष सुदी पंचमी को विनयसिद्धि और आगमसिद्धि को साध्वी दीक्षा दी गयी।
वि० सं० १३२४ अगहन वदी २ शनिवार को जावालिपुर में अनन्तश्री, व्रतलक्ष्मी, एकलक्ष्मी और प्रधानलक्ष्मी तथा वि० सं० १३२५ वैशाख सुदी १० को पद्मावती ने भागवती दीक्षा अंगीकार की।
वि० सं० १३२६ में आचार्यश्री ने श्रेष्ठिवर्ग को प्रार्थना पर २३ साधुओं तथा लक्ष्मीनिधि महत्तरा आदि १३ साध्वियों के साथ शत्रुजय तीर्थ की यात्रा की।४ । _ वि० सं० १३२८ ज्येष्ठ वदी चतुर्थी को जावालिपुर में हेमप्रभा को साध्वी दीक्षा तथा वि० सं० १३३० वैशाख वदी ६ को कल्याणऋद्धि गणिनी को महत्तरा पद दिया गया ।५ वि० सं० १३३१ में आचार्य जिनेश्वरसूरि (द्वितीय) का स्वर्गवास हुआ ।६।।
आचार्य जिनेश्वरसूरि के स्वर्गारोहण के पश्चात् वि० सं०१३३१ फाल्गुन वदी ८ को आचार्य जिनप्रमोदसूरि ने खरतरगच्छ का नायकत्व प्राप्त किया। आपके वरदहस्त से अनेक मुमुक्षु महिलाओं ने दीक्षा प्राप्त की, जिसका विवरण इस प्रकार है___ आचार्यश्री ने वि० सं० १३३१ फाल्गुन सुदी ५ को केवलप्रभा, हर्षप्रभा, जयप्रभा, यशप्रभा इन चार महिलाओं को दोक्षा प्रदान कर श्रमणीसंघ में सम्मिलित किया। दीक्षा-महोत्सव जावालिपुर में सम्पन्न हुआ।
वि० सं० १३३२ ज्येष्ठ वदी प्रतिपदा शुक्रवार को जावालिपुर में ही लब्धिमाला और पुण्यमाला को साध्वी दीक्षा प्रदान की गयी। वि० सं० १३३३ माघ वदी १३ को आचार्यश्री ने गणिनी कुशलश्री को प्रवर्तिनी पद पर प्रतिष्ठित किया । ___ वि० सं० १३३४ चैत्र वदी ५ को आचार्यश्री शत्रुञ्जय तीर्थ की यात्रा पर गये। इस यात्रा में उनके साथ २७ मुनि तथा प्रवर्तिनी कल्याण ऋद्धि आदि १५ साध्वियां भी थीं।१० शत्रुजय तीर्थ पर ही
१. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली पृ० ५२ ३. वही पृ० ५२ ५. वही पृ० ५२ ७. वही पृ० ५४ ९. वही पृ० ५५
२. वही पृ० ५२ ४. वही पृ० ५२ ६. वही पृ० ५४
८. वही पृ० ५५ १०. वही पृ० ५५
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