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२४६ : जैनधर्मं की प्रमुख माध्वियाँ एवं महिलाएँ
वि० सं० १३७५ माघ सुदी १२ को नागौर में एक भव्य समारोह में शीर्षसमृद्धि, दुर्लभसमृद्धि और भुवनसमृद्धि को साध्वी तथा गणिनी धर्ममाला एवं गणिनी पुण्यसुन्दरी को प्रवर्तिनी पद प्रदान किया गया ।" इसी अवसर पर आचार्यश्री ने पं० कुशलकीर्ति को अपना उत्तराधिकारी ( पट्टधर ) घोषित कर उन्हें वाचनाचार्य पद दिया । संवत् १३७६ आषाढ़ सुदी ९ को ६५ वर्ष की आयु में आचार्य जिनचन्द्रसूरि का निधन हो गया। गच्छनायक आचार्य के निधन के पश्चात् गच्छ के ज्येष्ठ मुनिजनों, साध्वियों एवं श्रावकों ने एक सभा आयोजित कर स्वर्गीय आचार्य के पूर्वआदेशानुसार गणि कुशलकीर्ति को पाटन में जिनकुशलसूरि के नाम से उनके पट्ट पर आसीन कराया ।
आचार्य जिनकुशलसूरि ने वि० सं० १३८९ वैशाख बदी ६ को पाटन में धर्मसुन्दरी और चारित्रसुन्दरी को साध्वी दीक्षा दी । " वि० सं० १३८३ वैशाख बढी ५ को कमलश्री और ललितश्री की दीक्षा हुई ।
वि० सं० १३८६ को देवराजपुर में कुलधर्मा, विनयधर्मा और शीलर्मा ने साध्वी दीक्षा ग्रहण की। इसी नगरी में वि० सं० १३८८ में जयश्री और धर्मश्री को क्षुल्लिका दीक्षा दी गयी ।" इस प्रकार स्पष्ट है कि खरतरगच्छ में इस समय भी साध्वियों की बड़ी संख्या थी । वि० सं० १३८९ फाल्गुन बदी ५ को आचार्य श्री जिनकुशलसूरि का स्वर्गवास हुआ।'
दिवंगत आचार्य जिनकुशलसूरि के पूर्व आदेशानुसार क्षुल्लक पद्ममूर्ति पद्मसूरि नाम से वि० सं० १३९० ज्येष्ठ सुदी ६ को आचार्य पद
जो आसायण कुणई अनंत संसारू भमई सो जीवो । जो आसायण रक्खइ सो पासइ सासयं ठाणं ||५०४|| इति श्री अंजणासुन्दरी महासती कथानकं समाप्तम् । कृतिरियं श्रीजिनचन्द्रसूरिशिष्यणी श्रीगुणसमृद्धिमहत्तरायाः || ||
'श्री जैसलमेर दुर्गस्थ जैन ताड़पत्रीय ग्रन्थ भण्डार सूचीपत्र' संपा० मुनिपुण्य विजयजी अहमदाबाद, १९७२ ई० क्रमांक - १२७८ पृ० २८२-२८३ १. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली पृ० ६५ २. वही पृ० ६५
४. वही पृ० ७०
६. वही पृ० ८० ८. वही पृ० ८५
३. वही पृ० ६८
वही पृ० ७७ ७. वही पृ० ८२ ९. वही पृ० ८५ ।
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