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खरतरगच्छीय साध्वी परम्परा और समकालीन साध्वियां : २४७ पर प्रतिष्ठित किया गया ।' यह पट्टमहोत्सव देवराजपुर स्थित विधिचैत्य में स्वगच्छीय साधु-साध्वियों तथा समाज के स्वपक्षीय श्रावकों के समक्ष बड़े धूम-धाम से सम्पन्न हुआ ।
आचार्य जिनपद्मसूरि ने वि० सं० १३९१ पौष वदी १० को लक्ष्मीमाला नामक गणिनी को प्रवर्तिनी के पद पर प्रतिष्ठित किया। वि० सं० १३९४ चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को आप १५ मुनियों तथा जपद्धि महत्तरा आदि ८ साध्वियाँ और कुछ श्रावकों के साथ अर्बुदतीर्थ की यात्रा पर गये। जिनपद्मसरि द्वारा किसी महिला को साध्वी दीक्षा देने का उल्लेख नहीं मिलता । वि० सं० १४०४ वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को अल्पायु में ही इनका दुखद निधन हो गया ।५। ___बाद की शताब्दियों में भी खरतरगच्छ में साध्वियों की पर्याप्त संख्या रही । नाहटाजी द्वारा संकलित और सम्पादित 'बीकानेर जैनलेख संग्रह" में भी १८ साध्वियों का उल्लेख मिलता है। अन्य लेख संग्रहों में भी खोजने पर कई साध्वियों का नाम मिल सकता है ।
खरतरगच्छीय श्रमणीसंघ में यद्यपि बड़ी संख्या में साध्वियाँ थीं, परन्तु उन्होंने स्वयं को धार्मिक अनुष्ठानों तक ही सीमित रखा । जहाँ इस गच्छ में अनेक साहित्योपासक मुनि हो चुके हैं, वहाँ श्रमणीसंघ में मात्र ४-५ विदुषी साध्वियों का उल्लेख प्राप्त होता है, श्री अगरचन्दजी नाहटा ने नारी शिक्षा का अभाव इसका प्रमुख कारण बतलाया है जो सत्य प्रतीत होता है।
वर्तमान युग में नारी शिक्षा के उत्तरोत्तर प्रचार के कारण श्वेताम्बरदिगम्बर दोनों सम्प्रदायों की सभी शाखाओं में आज अनेक विदुषी साध्वियाँ हैं जो तपश्चरण के साथ-साथ स्वाध्याय में भी समान रूप से रत हैं। खरतरगच्छ में साध्वी सज्जनश्री ऐसी विदुषी साध्वी हैं जो अपनी विद्वत्ता के कारण ही प्रसिद्ध हैं । वस्तुत नारी शिक्षा के प्रचार के कारण मध्यकाल की अपेक्षा आज खरतरगच्छ ही नहीं वरन् सम्पूर्ण जैन श्रमणीसंघ का भविष्य उज्ज्वल है । १. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली पृ० ८५ २. वही पृ० ८६ ।। ३. वही पृ० ८७
४-५. वही पृ० १७७ ६. द्रष्टव्य-परिशिष्ट-च, पृ. ३८ ७. नाहटा, अगरचन्द--कतिपय श्वे० विदुषी कवियित्रियाँ, चन्दाबाई अभि
नन्दन ग्रन्थ ( आरा, विहार १९५४ ) पृ० ५७० और आगे ८. वही प० ५७३
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