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२३८ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं संघ का द्वार खुला हुआ था। स्थानांगसूत्र और उसकी टीका' में उन १० विभिन्न कारणों का उल्लेख है, जिनके कारण ही स्त्रियाँ दीक्षा ग्रहण करती थीं। ये कारण मुख्य रूप से सामाजिक, पारिवारिक एवं आर्थिक हैं । सामान्यतः नारी अपने पति, पुत्र, भाई या अन्य किसी प्रिय सम्बन्धी की मृत्यु या प्रव्रज्या ग्रहण करने पर स्वयं भी प्रव्रजित हो जाती थी। कभी-कभी धर्माचार्यों के उपदेश से भी स्त्रियों द्वारा प्रव्रज्या लेने का उल्लेख मिलता है। ____ जैन परम्परा में प्रारम्भ से ही स्त्रियों को समान धार्मिक अधिकार दिये गये और चतुर्विध संघ में साधु के साथ साध्वी तथा श्रावक के साथ श्राविका भी सम्मिलित की गयी। जैनधर्म के दोनों सम्प्रदायों और उनकी शाखाओं में आज भी बड़ी संख्या में साध्वियाँ विद्यमान हैं। इस लेख में श्वेताम्बर सम्प्रदाय की एक प्राचीन और महत्वपूर्ण शाखा-खरतरगच्छ की साध्वी परम्परा पर प्रकाश डाला गया है। विक्रम संवत् की ग्यारहवीं शताब्दी में अपने अभ्युदय से लेकर आज भी यह गच्छ जैनधर्म के लोककल्याणकारी सिद्धान्तों का पालन कर विश्व के समक्ष एक उज्ज्वल आदर्श उपस्थित कर रहा है। ___ खरतरगच्छ में अनेक प्रभावक आचार्य, उपाध्याय, विद्वान् साधु एवं साध्वियाँ तथा बड़ी संख्या में तन्त्र-मन्त्र के विशेषज्ञ, ज्योतिर्विद, वैद्यक शास्त्र के ज्ञाता यतिजन हो चुके हैं, जिन्होंने न केवल समाजोत्थान बल्कि संस्कृत. प्राकृत, अपभ्रंश और देश्य भाषाओं में साहित्य-सजन कर उसे समृद्ध बनाने में महान् योग दिया है ।३ चैत्यवास का उन्मूलन कर सुविहितमार्ग को पुनः प्रतिष्ठित करना खरतरगच्छीय आचार्यों की सबसे बड़ी देन है।४
खरतरगच्छ बृहद्गुर्वावली' में इस गच्छ के महान् आचार्यों के दीक्षा, १. स्थानांग १०/७१२, टोका भाग-५, पृ० ३६५-६६ २. जैन और बौद्ध भिक्षुणी संघ; डॉ० अरुणप्रतापसिंह, पृ० १२-१३ ३. खरतरगच्छ का इतिहास (प्रथम खण्ड) महोपाध्याय विनयसागर, भूमिका
पृ० ४-५ । ४. खरतरगच्छ का इतिहास (प्रथम खण्ड) महोपाध्याय विनयसागर, भूमिका
पृ० ४-५ । ५. यह ग्रन्थ मुनि जिनविजय जी के संपादकत्व में सिन्धी जैन ग्रन्थमाला के
अन्तर्गत १९५६ ई० में प्रकाशित हो चुका है।
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