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दिगम्बर सम्प्रदाय की अर्वाचीन आर्यिकायें : २३५
आषाढ़ कृष्णा ३ सं० २०१७ के दिन खण्डगिरि-उदयगिरि में क्षु ल्लिका एवं माघ कृष्णा १४ सं० २०२१ के शुभ दिन मुक्तागिरि तीर्थ क्षेत्र के पावन प्रांगण में आर्यिका दीक्षा प्रदान कर संसारसागर से पार होने के रास्ते को दर्शाया। ब्र० गेन्दाबाई ने आर्यिका के महाव्रतों के साथ सूर्यमती नामरूपी अलंकरण को गुरुवर्य से प्राप्त कर अपने जीवन को कृतकृत्य किया। आयिका स्वर्णमती जी
शैशवावस्था के उत्तम संस्कार भविष्य में उत्तम परिणति कराते हैं । उत्तम संस्कारों में सोनाबाई श्री सावकाप्पा एवं श्रीमती सत्यवती की सुपुत्री हैं। इनका जन्म ग्राम सीरगुप्पी, तालुका जमकण्डी जिला बीजापुर (कर्नाटक) में हुआ था । सोनाबाई ने १८ वर्ष की अवस्था में ही ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया था। अनन्तर श्रावण शक्ला ५ हस्तनक्षत्र तदनुसार ७ अगस्त १९७० ई० को शेडवार में श्री १०८ मुनि आदिसागर से आर्यिका के महाव्रत ग्रहण कर सोनाबाई से आर्यिका स्वर्णमती हो गयीं। विद्याभ्यास करती हुई आप धर्मभावना में संलग्न हैं । क्षुल्लिका सुशीलमती जी । प्रत्येक प्राणी को चाहिए कि जो श्रेयस्कर है उसे प्राप्त करे । अतएव क्षत्रीग्राम निवासी सुन्दरलाल जी एवं हलकीबाई की पुत्री रतनमाला ने भारत की राजधानी दिल्ली में आचार्य कुन्थुसागर महाराज से क्षु ल्लिका दीक्षा ग्रहण कर अपना श्रेयमार्ग खोज निकाला।
आयिका स्याद्वादमती जी __ऋषियों मुनियों की प्राञ्जल वाग्धारा प्राणी को यथार्थ मार्ग पर पहुंचा देती है। आ० कल्प श्री ज्ञानभूषण जी महाराज के सदुपदेश ने कु० ऐरावती पाटनी की जीवनधारा ही परिवर्तित कर दी, जिससे इन्होंने महाराजश्री से अपनी १६ वर्ष की अल्पायु में आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया। कुछ ऐरावती का जन्म १४ मई १९५३ ई० के दिन इन्दौर (म० प्र०) निवासी श्री धन्नालाल पाटनी और श्रीमती कमला देवी नामक श्रावक दम्पति के यहाँ हुआ था। स्नातक पर्यन्त अध्ययन करने अपने जीवन को साध्वी रूप में व्यतीत करने का निश्चय किया।
सांसारिक सुखों को तिलाञ्जलि देकर आत्मसाक्षात्कार करने के
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