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२२४ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं आर्यिका विद्यामती माताजी ___ जीवन के विकास का मार्ग आदि से अन्त तक कठिनाइयों से भरा हुआ है। उस पर चलने वाला यात्री तभी आगे बढ़ सकता है, जब उसका हृदय दढ़ हो और आशंकाओं से रहित हो। इसी सिद्धान्त की अनुगामिनी आ० विद्यामती जी हैं। आपका जन्म नाम लक्ष्मीबाई है। जन्म स्थान उदयपुर
और पिता-माता के नाम क्रमशः श्री उदयलाल जी, श्रीमती सुहागदेवी हैं। पति नाम ताराचन्द्र है। लक्ष्मीबाई ने संवत् २०३८ में मरैना नामक स्थान के भव्य प्रांगण में आचार्य श्री सुमतिसागर महाराज से दीक्षा लेकर आर्यिका विद्यामती रूप गौरव को प्राप्त किया। आर्यिका विद्यामती जो
शान्तिबाई का जन्म फाल्गुन कृष्णा १३ वि० सं० १९९२ के शुभदिन लालगढ़ (बीकानेर) निवासी श्री नेमीचन्द वाकलीवाल के सुखसमद्धि सम्पन्न परिवार में हुआ। वैसाख कृष्णा ४ वि० सं० २००५ के दिन श्री मूलचन्द्र जी के साथ आपका पाणिग्रहण हुआ । वैसाख सुदी ६ वि० सं० २००८ के दिन शान्ति के पति श्री मूलचन्द्र जी कलकत्ता से एकाएक कहीं चले गये । दुःखी शान्ति की आँखें राह देखतीं-देखतीं थक गयीं किन्तु कुछ समय पश्चात् आचार्यश्री १०८ शिवसागर जी महाराज से सुजानगढ़ में आर्यिका दीक्षा [वि० सं० २०१७] ग्रहण की। दीक्षोपरान्त आचार्य श्रेष्ठ ने नवीन नामकरण विद्यामती जी किया । साक्षात् विद्या का रूप धारण कर रहीं आप ज्ञान-ध्यान में तल्लीन हैं। आर्यिका विमलमती माता जी
आपका बाल्यावस्था का नाम मथुराबाई है। मथुराबाई मध्यप्रदेशवर्ती शाहगढ़ के निकटस्थ मुंगावली नगर निवासी परवार जातीय श्री रामचन्द्र जैन की छठवीं छोटी पुत्री हैं । तत्कालीन बाल विवाह की प्रथानुसार १२ वर्ष की बालिका मथुराबाई का विवाह भोपाल निवासी श्री बाबहीरालाल जी के साथ कर दिया गया। किन्तु दुर्दैव से कुछ ही दिन बाद श्री हीरालाल जी का देहावसान हो गया । सौभाग्य से नागौर में मुनिश्री चन्द्रसागर जी पधारे। उनके वचनामृत से प्रभावित होकर आपने अपनी जीवन दृष्टि बदली और त्याग मार्ग में अवतरित हो गयीं। मुनिश्री चन्द्रसागर से कार्तिक कृष्णा ५ वि० सं० २००० के दिन क्षुल्लिका के व्रत लिए। आपका नामकरण 'मानस्तम्भिनी' हुआ। अनन्तर आपने शास्त्रीय ज्ञान और
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