________________
२१८ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं जयमाला ने क्षुल्लिका के व्रत ग्रहण कर लिये। इसके अनन्तर कार्तिक शुक्ल २ मंगलवार वि० सं० २०३० आ० विमलसागर महाराज से ही आर्यिका दीक्षा के साथ नन्दामती संज्ञा को ग्रहण किया। आयिका निर्मलमती माता जी
जयपुर मण्डल के अन्तर्गत बैराठ ग्राम के निवासी श्री महादेव सिंघई की धर्मपत्नी गोपालीबाई ने मगसिर वदी १२ सं० १९८० के दिन एक बालिका को जन्म दिया था। इस बालिका का मनफल बाई नामकरण किया गया था । मनफूल बाई का विवाह १३ वर्ष की अल्पायु में हो गया था किन्तु ११ महीने बाद वैधव्य जीवन को अपनाना पड़ा। इस शोकसागर में निमग्न होने के कारण संसार से विरक्ति धारण कर आचार्य धर्मसागर महाराज से आर्यिका के महाव्रतों को अङ्गीकार किया। वर्तमान में जिनधर्म प्रभावना करती हुईं भारतधरा पर विहार कर रही हैं। आर्यिका नेमवती माता जी
नेमवती का जन्म फफोतू (टूंडला) आगरा (उ० प्र०) के श्री व्यारेलाल एवं श्रीमती जयमाला जैन श्रावक युगल से मई १९३० ई० में हआ था। आपका गृहस्थावस्था का नाम बिटुंबाई था। धार्मिक अध्ययन करते हुए जीवन यापन कर रही थीं कि आपको संसार से वैराग्य हो गया। अनन्तर आपने अप्रैल १९७५ ई० में कलकत्ता नगर के मध्य आचार्यश्री १०८ सन्मतिसागर महाराज से आर्यिका दीक्षा ग्रहण की। वर्तमान में तपस्वी जीवन को व्यतीत करती हुई निरन्तर व्रतोपवास तथा धर्म साधना में तल्लीन रहती हैं। आयिका नेमीमती माता जी
ज्ञानार्जन में दत्तचित्त भंवर कुमारी का जन्म श्रावण कृष्णा ७ वि०. १९५५ की शाम को जयपुर में हुआ था। इनके पिता श्री रिखबचन्द्र जी विन्दायक्या और मातुश्री मेहताब बाई थीं। इनके पति लाला गणेशलाल विलाला थे। पति और पत्नी दोनों जिनसाधुओं की वैयावृत्ति में लगे रहते थे। पति के वियोग के अनन्तर भंवर कुमारी ने आचार्य शिवसागर से क्षुल्लिका एवं वि० सं० २०१७ में सुजानगढ़ नगर के मध्य आर्यिका के. महाव्रतों को ग्रहण किया।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org