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२१६ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियाँ एवं महिलाएँ क्षुल्लिका जयश्री जी
विषय वासनाओं के प्रति आसक्ति और क्रोध के आवेश को वश में कर लेने पर आत्मबल बढ़ता है और यही सफलता का रहस्य है | विषय वासना के आधीन न होने वाली मातुश्री जयश्री का जन्म अक्कलकोट जिला सोलापुर (महाराष्ट्र) में हुआ था । आपने विवाह न करके २० वर्ष की आयु में ही स्वर्गीय आचार्य पायसागर से सातवी प्रतिमा के व्रत ले लिए थे। आचार्य देशभषण के संघ में सम्मिलित हो आप्तमीमांसा, आप्तपरीक्षा, न्यायदीपिका आदि ग्रन्थों का अध्ययन कर ई० १९५९ श्रवणबेलगोल में ही उन्हीं से क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण कर ली।
आर्यिका दयामती माताजी
सागर नगर के सिंघई गोरेलाल जैन के सूखसम्पन्न परिवार में आपका जन्म हआ था । बाल्यावस्था का नाम नन्होंबाई है। प्रारम्भिक काल में सामान्य अध्ययन कर वैवाहिक जीवन यापन करने वाली आपके गार्हस्थिक जोवन में वज्रपात हआ कि वैधव्य जीवन में आ गयीं । समय के साथ दुःख दूर हुआ और एक नया अभ्युदय हुआ कि आपका कनकमती जी से सम्पर्क हुआ । अनन्तर उनकी प्रेरणा से आचार्य शिवसागर महाराज से दीक्षा ग्रहण की और दयामती रूप वर्गों को अलंकृत करते हुए महाव्रती जीवन अपनाया। वर्तमान में आचार्य १०८ अजितसागर महाराज के संघ में विराजमान हैं ।
क्षुल्लिका दयामती जी
प्रगतिशील मनुष्य के मार्ग में आने वाला एकमात्र बाधक भय है। इस भय को ललितपुर निवासी काशीराम जैन एवं श्रीमती केशरबाई की पुत्री और श्रो भागचन्द्र जैन की पत्नी जमनाबाई ने तिलाञ्जलि दी। सिद्धक्षेत्र सोनागिर के मनोरम प्रांगण मे आचार्यश्री सुमतिसागर महाराज से क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण कर दयामतो संज्ञा को प्राप्त किया । दयावन्त जीवन को व्यतीत करती हुई कर्म बेड़ी का जीर्ण कर रही हैं । महासाध्वी आयिका श्री धर्ममती माताजो ___ संयम और चारित्र से अलंकृत महासाध्वो आ० धर्ममतो माताजो का जन्म १८९८ ई० मे कुचामन नगरी के समीपस्थ लूणवा नामक ग्राममें श्री
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