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दिगम्बर सम्प्रदाय की अर्वाचीन आयिकायें : २१५ परम विदुषी हो गईं और गुरुवर्य से प्राप्त 'जिनमती' नाम को सार्थक किया।
ज्ञान और चारित्र की बढ़ती धारा ने महाव्रत धारण की क्षमता उत्पन्न करा दी। परिणामस्वरूप कार्तिक शुक्ला ४ वि० सं० २०१६ के दिन सीकर (राजस्थान ) के मनोरम समारोह में आचार्यश्री शिवसागर महाराज से आर्यिका दीक्षा ग्रहण कर लो। __ संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी भाषा का सम्यक्रीत्या अध्ययन होने से आपने न्याय, व्याकरण, कोष एवं सैद्धान्तिक ग्रन्थों का परायण किया और प्रमेयकमलमार्तण्ड जैसे महान दार्शनिक ग्रन्थ की हिन्दी टीका करके दार्शनिक क्षेत्र की महती पूर्ति की है। आर्यिका श्री जिनमती जी
आपका जन्म पाडवा (सागावाडा) में विक्रम संवत् १९७३ में हुआ था। बाल्यावस्था में आपको मंकुबाई नाम से पुकारा जाता था। मंकुबाई के पिता नरसिंहपुरा जाति के श्री चन्दुलाल जो एवं माता श्रीमती दुरीबाई हैं। मंकुबाई का विवाह पारसोला में हुआ था किन्तु ६ माह बाद ही वैधव्य के दुःख से आक्रान्त हो गयीं। वैधव्य ने जीवन दिशा को मोड़ दिया जिससे महावीरकीर्ति महाराज से प्रथम प्रतिमा के व्रत लिए । अनन्तर वर्धमानसागर महाराज से सातवों प्रतिमा और २०२४ में क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण की। संयमोचित व्रतोपवास आदि नियमों का पालन करती रही और चारित्र की विशुद्धि करती रहीं। फलस्वरूप सम्मेदशिखर के परमपावन स्थल पर आचार्यश्री विमलसागर से आर्यिका के महाव्रतों के साथ जिनमती रूप अभिधान को हस्तगत किया। आप संघ की तपस्विनी आर्यिका हैं । क्षु० जयमती जी ___ भारतीय नारी सन्मान को पात्रा है किन्तु यदा-कदा उसे अपमान भी सहना पड़ता है। इस अपमानित जीवन को निन्द्य मानकर शान्ति देवी ने १७ सितम्बर १९६९ में क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण कर ली। शान्ति देवो के पिता श्री पदमचन्द जैन एवं माता श्रीमती मैना देवी जैन, मुजफ्फरनगर ( उ० प्र० ) के निवासी हैं। आपने लौकिक अध्ययन इण्टरमीडिएट पर्यन्त किया किन्तु धार्मिक षट्खण्डागम आदि ग्रन्थों के भी स्वाध्याय से ज्ञानार्जन में तल्लीन हैं।
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