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दिगम्बर सम्प्रदाय की अर्वाचीन आयिकायें : २१३ विमलमती एवं आर्यिका विजयमती की उपस्थिति में गुरुवर्य से अपनी ३० वर्ष की अल्पायु में आर्यिका नाम्नी जिनदीक्षा ग्रहण की थी। वर्तमान में जिनेन्द्रमार्ग का प्रचार-प्रसार करती हुई आत्मसाधनारत हैं। आर्यिका चन्द्रमती माताजी
भवभ्रमण से मुक्त होने का संकल्प सुलोचना बाई ने किया। सुलोचना बाई जैन केसरिया ( ऋषभदेव ) राजस्थान निवासी श्री अमरचन्द्र जैन एवं ललिताबाई जैन की संतान हैं। इनका जन्म कार्तिक वदी अमावस्या वीरनिर्वाण के शुभ दिन हआ था। सुलोचना बाई के संकल्प ने माघ सूदी ३ सं० २०३२ के शुभमुहूर्त में १०८ आचार्यश्री सुमतिसागर महाराज से आर्यिका दीक्षा ग्रहण कर साकाररूपता प्राप्त की। आर्यिका महाव्रत ग्रहण के अनन्तर गुरुप्रदत्त चन्द्रमती नाम को सार्थक करती हुई धर्म भावना में तत्पर हैं। आर्यिकाश्रेष्ठ चन्द्रमती माताजी
महाराष्ट्र प्रान्त के पूना मण्डलान्तर्गत वाल्हेगांव में माता चन्द्रमती का जन्म हुआ था। गृहस्थ जीवन में आपको केसरबाई नाम से पुकारा जाता था। आचार्य शान्तिसागर जी महाराज ने केसरबाई को सत्पात्र विचार कर दीक्षा दे दी। महाराजश्री ने अनेक महिलाओं को अनेकशः प्रार्थना करने पर भी दीक्षा नहीं दी थी किन्तु केसरबाई को यह कहकर दीक्षित किया था कि नमूना तो बनो। ये वर्तमान समय की प्रथम आर्यिका दीक्षित हुई थीं। इनके पूर्व उत्तर भारत में आर्यिका पद पर कोई भी विद्यमान नहीं था। इन्होंने ५०० वर्ष से विच्छिन्न श्रमणोमार्ग को पुनः उत्तर भारत में गौरवान्वित किया। क्षुल्लिका चन्द्रमती माताजी ___ आपका जन्म दि० १७-४-४४ को बैजापुर (महाराष्ट्र) में हुआ था। पिता छगनलाल और माता सौ० सोनुबाई हैं। जन्म नाम कु० खीरनमाला तथा विद्यालयीय नाम कु० शकुन्तला है। लौकिक शिक्षण में आपने बी० ए० आनर्स तथा H. M. D. S. वैद्यकीय उपाधि प्राप्त को है। विवाह डॉ० चन्द्रकान्त गुलाबचन्द्र दोशी (वर्तमान में पूज्य १०८ बीरसागर महाराज) के साथ हुआ था। आपने अनेक आध्यात्मिक जैन ग्रन्थों का सूक्ष्मरीत्या अध्ययन किया है। सम्प्रति प्राणियों को आत्मोन्नति का उपाय दर्शाती हुई साधनारत हैं।
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