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२१२ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएँ
आचार्य देशभूषण महाराज से क्षुल्लिका दीक्षा लेकर कमलश्री सम्पन्न अब धर्मकार्य में दत्तचित्त हैं ।
क्षुल्लिका कीर्तिमती जी
आपका जन्म कुसुम्बा जिला धूलिया ( महाराष्ट्र ) में हुआ । पिता का नाम श्री हीरालाल ब्रजलाल शहा तथा माता का नाम श्रीमती झमकोर बाई है । १५ वर्ष की आयु में विवाह हुआ और दो बच्चे भी हुए, किन्तु संसार के प्रति अनासक्ति होने से २४ वर्ष की आयु में ही सप्तम् प्रतिमा के व्रत आचार्य देशभूषण से ग्रहण कर लिए। महाराजश्री के संघ में रह रही थीं कि फलटण में क्षु० चारित्रसागर से भेंट हुई। उनके साथ सम्मेद - शिखर में पहुँचकर आचार्यश्री विमलसागर जी से फाल्गुन शुक्ला ५ सं० २०३३ को क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण कर ली । आप शांत स्वभावी सतत अध्ययनशील हैं ।
आर्यिका गुणमती माताजी
अतिशय क्षेत्र महावीर जी का पावन परिसर जन-जन की भावनाओं को विशुद्ध करने में परम सहायक है। इसी परिसर के मध्य श्री मूलचन्द्र जी एवं श्रीमती बदामीबाई के यहाँ एक बालिका का जन्म हुआ था । इन्होंने उस बालिका का नाम असर्फीबाई रखा क्योंकि इसके जन्म होने पर उन्हें असर्फी प्राप्त हुई थी । असर्फीबाई की लौकिक शिक्षा कक्षा ४ तक थी, किन्तु धार्मिक शिक्षा शास्त्री पर्यन्त । विवाह सेठ भँवरलाल से हुआ और दो पुत्र, एक पुत्री थी । धार्मिक संस्कार और अनेक मुनियों- आर्यिकाओं के सम्पर्क से वैराग्यरूप बीजांकुर प्रस्फुटित हुआ कि आचार्यश्री १०८ धर्मसागर से दीक्षा लेकर आर्यिका गुणमती रूपी कल्पतरु हो गया, जिसमें महाव्रत, देशसंयम आदि रूप फल फलित हैं ।
आर्यिका चन्द्रमती माताजी
अनेक अरण्य, महीधर, सरिता एवं उद्यान आदि प्राकृतिक सुरम्य दृश्यों से मनोरम उत्तर प्रदेश के मैनपुरी मण्डलान्तर्गत बेलार ग्राम निवासी श्री लालाराम जी एवं श्रीमतो कस्तूरीबाई नामक दम्पति से आपके पार्थिव शरीर का उदय हुआ था । आपका जन्मकाल अगहन कृष्णा २ विक्रम सं० १९८२ है और बचपन का नाम चन्द्रकली है । संसार को असारता देखकर स्वयं वैराग्य भावना से प्रेरित होकर आर्यिका
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