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दिगम्बर सम्प्रदाय की अर्वाचीन आर्यिकायें'
--आयिका ज्ञानमती माताजी आ० अभयमती माताजी
आप आचार्य धर्मसागर महाराज की शिष्या हैं। आपका जन्म सन् १९४३ में हुआ। आपके पिता का नाम श्री छोटेलाल था। सन् १९६३ में माताजी ज्ञानमतीजी ने आपको क्षुल्लिका दीक्षा प्रदान की। सन् १९६९ के फाल्गुन महीने में आपका संघ विहार करता हुआ 'श्री महावीरजी' आ गया। मुनि धर्मसागर जी ने पंचकल्याणक सम्पन्न कराया एवं आपको आर्यिका दीक्षा प्रदान की। आपने अपने २० वर्ष के दीक्षित जीवन में आचार्यों द्वारा रचित कई ग्रन्थों के पद्यानुवाद किये तथा स्वयं भी छोटीछोटी १०-१५ पुस्तकों की रचना की।
आर्यिका अनन्तमती जी
आर्यिका अनन्तमती जी के पार्थिव शरीर का जन्म १३ मई १९३५ ई० के दिन स्थानकवासो मान्यता विश्वासी श्री मिट्ठनलाल जी एवं श्रीमती पार्वती देवी के घर गढ़ीगांव में हुआ था। दिगम्बर श्रमण परम्परा से प्रभावित होकर इलायची देवी ने आचार्य देशभूषण से १८ वर्ष की अवस्था में आर्यिका दीक्षा ली और आर्यिका अनन्तमती संज्ञा से विभूषित हुईं। आयिका आदिमती जी
राजस्थान के भरतपुर मण्डलान्तर्गत कामा निवासी श्री सुन्दरलाल जी एवं श्रीमती मोनीबाई की पुत्री मैनाबाई का विवाह मथुरा निवासी श्री कपूरचन्द्र जैन से हुआ किन्तु दुर्भाग्य से उन्हें एक वर्ष बाद ही वैधव्य ने आ घेरा । संसार को असार जान उन्होंने वि० सं० २०१७ में कम्पिलाजी की पावन धरा पर क्षल्लिका दीक्षा ली। तदुपरान्त व्रतों का पालन करते हुए चारित्र की अभिवृद्धि की जिसके परिणामस्वरूप १. पूज्य आर्यिका रत्नमती अभिनन्दन ग्रन्थ से साभार ।
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