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१८४ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं
इस घटना से दूसरी बात यह स्पष्ट होती है कि साध्वी समुदाय ज्ञानोपार्जन के लिए नियमित अभ्यास करता था । साध्वी याकिनो अपना पाठ बार-बार दुहरा रही थीं जिससे वे उसे स्मरण रख सकें । वे संगीत तथा राग की भी ज्ञाता रही होंगी तभी सुन्दर राग में उस गाथा को याद कर रही थीं ।
तीसरी बात यह है कि उस श्लोक के भावार्थ को समझने लायक धार्मिक साहित्य का उन्हें ज्ञान था । इसमें जैन धर्म की मान्यतानुसार अवसर्पिणी काल में होने वाले चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव आदि का वर्णन किया गया है ।
धनपाल की प्रतिभाशालिनी पुत्री
ई० ० सन् ९७० में धारा नगरी के प्रसिद्ध राजा भोज के दरबार में धनपाल को राज कवि का स्थान प्राप्त था । स्वयं राजा भोज एक महान् कवि और विद्वान् लेखक थे । अतः उनके दरबार में कई प्रसिद्ध विद्वानों, पंडितों, कवियों तथा लेखकों को सम्मान प्राप्त था
।
धनपाल अपने पिता के साथ उज्जैन में आकर बस गये थे। उनके भाई शोभन ने जैन धर्म से प्रभावित होकर महेन्द्रसूरि से दीक्षा अंगीकार की थी । धनपाल पहले कट्टर ब्राह्मण थे, पर अनुज से प्रभावित होकर उन्होंने भी जैन धर्म स्वीकार किया । बहिन सुन्दरी भी श्रमणोपासिका थी । धनपाल बचपन से ही अध्यवसायी थे । इन्होंने वेद-वेदान्त, स्मृति, पुराण आदि का प्रगाढ़ अध्ययन किया था । इनका विवाह 'धनश्री' नामक अति कुलीन कन्या से हुआ, जिससे उन्हें प्रखर बुद्धिशाली पुत्री हुई जिसको स्मरण शक्ति अद्भुत थी । इनकी प्रसिद्ध रचना तिलकमंजरी संस्कृत भाषा का श्रेष्ठ गद्य काव्य है, जिसे बाण कृत कादम्बरी के समतुल्य माना जाता है ।
इस 'तिलकमंजरी' रचना के साथ एक घटना का उल्लेख प्राप्त होता है । राजा भोज ने किसी कारण रुष्ट होकर इसे जला दिया ।
१. डॉ० हरीन्द्रभूषण जैन - महाकवि धनपाल : व्यक्तित्व एवं कृतित्व'मुनि जिनविजय अभिनन्दन ग्रन्थ', पृ० १०६
२ . वही । ३. वही ।
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