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२०४ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं नोट :-चम्पा श्राविका का यह वृतान्त, पर्युषण पर्व के पहले आज भी
__ व्याख्यान में पढ़ा जाता है । तेरापंथी सम्प्रदाय में साध्वियां एवं विदुषी महिलाएं :
इस सम्प्रदाय की शुरूआत राजस्थान में आचार्य भिक्षु ने की थी। इसमें कई प्रसिद्ध साध्वियाँ हुई हैं । माता दीपाबाई : __ आप ओसवाल समाज के शाह बालूजी की धर्मपरायणा पत्नी थीं। बालक भीखणजी जब गर्भ में थे तब माता ने सिंह का स्वप्न देखा था। विलक्षण बुद्धिवाले इस बालक के यौवन वय में आने पर माता-पिता ने उसका विवाह कर दिया। परन्तु कुछ वर्षों पश्चात् पिता एवं पत्नी का देहान्त हो गया। संसार की इस गति को देख भीखणजी को वैराग्य उत्पन्न हुआ और माता को बहुत समझा-बुझाकर उन्होंने दीक्षा ग्रहण की। माता दीपाबाई ने अपने वैधव्य दुःख से दुःखी होते हुए भी पुत्र के कल्याण मार्ग को प्रशस्त किया।
दीपाबाई के इस महान् त्याग ने नारी जाति का मस्तक उन्नत किया तथा भारतीय संस्कृति में त्याग तपस्या की एक विभूति और जुड़ गई। उनका यह महान् त्याग हजारों मनुष्यों के कल्याण का कारण बना। अब्बुजी का विशेष प्रण : ___आचार्य भीखणजी ने सर्वप्रथम अब्बुजी तथा अन्य दो साध्वियों को दोक्षा दी। साध्वी नियमों के अनुसार तीन से कम साध्वियों का रहना नियम विरुद्ध था। अतः आचार्य ने तीनों साध्वियों को दीक्षित करने के पहले इस बात का स्पष्टीकरण मांगा। इस पर इन निडर साध्वियों ने प्रण किया कि हम में से यदि कोई भी साध्वी काल का ग्रास हुई तो अन्य दोनों भी संथारा करके प्राण त्याग कर देगीं। अतः इस प्रकार तीन साध्वियों के अटल संकल्प से तेरापंथी साध्वी समुदाय की शुरूआत हुई।
वर्तमान साध्वी-संस्था में सबसे अधिक व्यवस्थित एवं अनुशासन को पालने वाली पांच सौ साध्वियां एक प्रवर्तनी कनकप्रभाजी की आज्ञा में रहती हैं । आचार्य तुलसी का यह साध्वी संघ ज्ञान, ध्यान एवं बुद्धि में
१. तेरापंथ का इतिहास, खण्ड १, पृ० २१-२४
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