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१७८ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं आचियक्क या आचलदेवी : __आचलदेवी होयसल नरेश बल्लाल द्वितीय के मंत्री चन्द्रमौलि की पत्नी परम जिन भक्त थी। रूप, गुण और शील-सम्पन्न यह महिलारत्न बालचन्द्र मुनि की गृहस्थ शिष्या थी। इस महिला ने १११२ ई० सन् में श्रवणबेलगोल में बड़ी भक्तिपूर्वक एक अति भव्य एवं विशाल पार्श्वजिनालय का निर्माण कराया था। आचियक्कन का संक्षिप्त रूप 'अक्कन' होने से यह मन्दिर अक्कन वसति के नाम से भी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि मन्दिरों के उक्त नगर में यही एक जिनमन्दिर होयसलकला का अवशिष्ट तथा उत्कृष्ट नमूना है। सप्तफणी पार्श्वनाथ की पाँच फुट ऊँची प्रतिमा के साथ धरणेन्द्र, पद्मावती की साढ़े तीन फुट ऊँचो मूर्तियाँ हैं। सुन्दर जालियाँ, चार चमकदार स्तम्भ, कलापूर्ण नवछत्र और शिखर पर सिंहललाट हैं। इस मन्दिर के निर्माण के लिये स्वयं उसके पति मन्त्री चन्द्रमौलि ने, जो वेदानुयायो ब्राह्मण थे, महाराज से प्रार्थना करके 'बम्मेयनहल्लि' ग्राम प्राप्त किया और गुरु बालचन्द्र को दान दिलाया था । गोम्मटेश्वर की पूजा के लिए भी 'बेक्क' नामक ग्राम को राजा से प्राप्त करके आचलदेवी ने दान कराया था। पति के कट्टर शैवभक्त होते हुए भी इस महिला ने उनसे पूरा सहयोग प्राप्त किया और पति ने भी अपनी धर्मात्मा जैन पत्नी आचलदेवी के धार्मिक कार्यों में पूरा सहयोग दिया। यह उसकी तथा उसके राज्य एवं काल को धार्मिक उदारता का परिचायक है। हयुर्वले:
होयसल राज्य के एक वीर सामन्त की पत्नी हयुर्वले चान्द्रायण देव की गृहस्थ शिष्या थी। अपने पुत्र को धर्म में दृढ़ देखकर वह अत्यन्त प्रभावित हुई और उसने भक्तिपूर्वक जिनेन्द्र भगवान् का अभिषेक किया
और उस पक्षाल (गंधोदक) को समस्त पापों को धोनेवाला समझ कर अपने पुत्र के मस्तक पर चढ़ाया तथा स्वयं ने मोह बन्धनों को तोड़कर
१. (क) डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन-प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं
पृ० १६० (ख) परमानन्द शास्त्री-श्रमण संस्कृति में नारी
ब्र० पं० चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रन्थ-पृ० ४७८
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