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१२८ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाए
दृढ़ निष्ठा, धर्मानुकूल सदाचार, शुभ विचारों एवं महावीर के अभिग्रह को जान पाने की मनोभिलाषा ने समाज में उन्हें प्रसिद्ध कर दिया । यद्यपि भगवान् महावीर को साक्षात् प्राप्त करके भी उनके अभिग्रह को नहीं जान पाई । लेकिन जीवन में उपस्थित हुए इन अनमोल क्षणों ने उसके मन को एकाग्रता और दृढ़ता प्रदान की, जिससे वह संयम, नियम तथा आत्महित साधना में और दृढ़ हुई ' ।
नन्दा - मूल्यांकन - नन्दा की मनोदशा से यह प्रतीत होता है कि तत्कालीन समाज में साधु, मुनि व त्यागी वर्ग के लिये जनमानस में बहुत आदर था । विशेषतया महिलाएँ उनके कष्ट पीड़ा को दूर करना अपना परम कर्तव्य व धर्मं समझती थीं ।
बहुलिका :
सानुयष्टिक गाँव के आनन्द नामक गृहस्थ के यहाँ कई दासियाँ थीं । उनमें एक बहुला नामक दासी भी थी । बहुला अपने कार्य, निष्ठा और परिश्रम से अपने स्वामी को सदा प्रसन्न रखती थी ।
एक समय कई प्रकार की कठोर तपस्या पूर्ण करने के पश्चात् महावीर आहार के लिये निकले । आनन्द श्रेष्ठी के यहाँ गये । बहुला दासी अवशिष्ट भोजन को एक ओर रखकर रसोई के बर्तन साफ कर रही थी । उस समय तप से कृशकाय हुए मुनि को देखकर दासी ने पूछा, 'हे मुनिराज ! यह अन्न आपके योग्य है क्या ?' दासी ने बहुत ही भक्तिभाव से भोजन के पश्चात् बचे हुए अवशिष्ट भोज्य पदार्थ महावीर को दिए । महावीर ने इस निर्दोष अन्न तथा बासी भोजन से सहज भाव से पारणा किया । इस आहार दान की महिमा से श्रेष्ठी के यहाँ पाँव दिव्य प्रगट हुए । जन मानस में आनन्द की लहर दौड़ गई । इस दान की महिमा से बहुला को दासत्व से मुक्ति मिली और उसने महावीर के सिद्धान्तों का पालन करते हुए धर्म ध्यान में अपना शेष जीवन व्यतीत किया | 3
१. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित - पर्व १०, सर्ग २, पृ० ८२- ११० २. आवश्यकचूणि, प्र० पृ० ३००
आवश्यकवृत्ति, (मलयगिरि) पृ० २२८
३. आचार्य हस्तीमल जी 'जैनधर्म का मौलिक इतिहास' पृ० ३८७ (क) पं० कल्याण विजयजी गणी, श्रमण भगवान् महावीर पृ० ३८
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