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१५८ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियों एवं महिलाएँ
ई० स० पूर्व ३६७ (वीर सं० १६०) में नन्दराजा के समय पाटलिपुत्र में बारह वर्ष का भीषण दुष्काल पड़ा। दुर्भिक्ष के कारण श्रमण-श्रमणी का निर्वाह होना कठिन हो गया। कुछ त्यागीवर्ग अन्यत्र विहार कर गये और कुछ ने समाधि-मरण को प्राप्त किया। दुष्काल के समाप्त होने पर श्रमण संघ पाटलिपुत्र में एकत्रित हुआ और अपनी-अपनी स्मृति के अनुसार एकादश अंगों को व्यवस्थित किया। आचार्य स्थूलभद्र ने इस परिषद् का नेतृत्व किया। उस समय साध्वी संघ का क्या अस्तित्व था, इसका वर्णन प्राप्त नहीं होता है। दूसरी परिषद् : __राजा खारवेल के समय में आचार्य महागिरि एवं आर्य सुस्थित के -नेतृत्व में आगम साहित्य को पुनः गठित करने के लिये एक परिषद् का
आयोजन किया गया जिसमें आर्या पोइणी के नेतृत्व में तीन सौ -साध्वियाँ भी सम्मिलित हुई थीं । तीसरी परिषद
पुनः श्रुत परम्परा के प्रवाह को प्रवाहमान रखने के लिये वीर सं० ८२५ तथा ई० सन् २९८ (वोर निर्वाण की नवीं शताब्दी) में आचार्य -स्कन्दिल के नेतृत्व में श्रमण संघ का सम्मेलन हुआ । इसी समय नागार्जुन के नेतृत्व में वल्लभी में भी कुछ श्रमणों का सम्मेलन हुआ। उस समय की साध्वियों एवं श्राविकाओं का उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। इससे यह प्रतीत होता है कि साध्वियों से आगम (श्रुत) साहित्य पुनर्गठन में सहयोग नहीं लिया गया। चौथी परिषद :
आगम संकलन की चौथी परिषद् आचार्य देवद्धिगणि धमाश्रमण के
१. मुनि समदर्शी प्रभाकर-आगम साहित्य : एक अनुचिन्तन-उद० गुरुदेव
रत्नमुनि स्मृति ग्रन्थ, पृ० १३ २. खण्डगिरि से प्राप्त ईसा की दूसरी शताब्दी के शिलालेख-उद० मुनि
सुशीलकुमार जैन धर्म का इतिहास-पृ० १३८ ३. हिमवन्त स्थविरावली (अप्रकाशित), उद० जैन धर्म का मौलिक इतिहास,
पृ० ५, भाग २,
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