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चतुर्थ अध्याय प्रथम शताब्दी से सातवीं शताब्दी तक की
जैन साध्वियाँ व विदुषी महिलाएँ उत्तर भारत में नन्द राजाओं के पश्चात् गुप्त वंश के राजाओं ने भी जैन धर्म को मान्यता प्रदान की थी। चीनी यात्री फाह्यान के यात्रा विवरण से प्रकट है कि साम्राज्य में जन सामान्य पर खान-पान सम्बन्धी जेनी अहिंसा का पूरा प्रभाव था।
गप्त वंश का प्रथम शासक श्री गुप्त 'चन्द्रप्रभु' का परम भक्त था। उसने चन्द्रप्रभु का मन्दिर बनवाया था। विदिशा की खुदाई में चन्द्रप्रभु की ऐसी कलापूर्ण मूर्ति प्राप्त हुई है जिस पर गुप्त वंशी ब्राह्मी भाषा में चन्द्रप्रभु नाम खुदा है। इसी प्रकार तृतीय नरेश रामगुप्त के समय की जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ विदिशा में प्राप्त हुई हैं, जिस पर गुप्त संवत् लिखा हुआ मालूम होता है। प्राचीन समय में मालवा जैन धर्म का प्रसिद्ध केन्द्र था। समाज में जैन धर्म पर श्रद्धा रखने वाले बहसंख्यक श्रावकश्राविका के कारण ही उक्त राजाओं ने मूर्ति बनवाकर प्रतिष्ठा करवाई। इस श्रेष्ठ धार्मिक कार्य के निमित्त प्रोत्साहन तथा प्रेरणा देने का कार्य निश्चय ही साध्वियों ने किया होगा। कुमारदेवी : __ गुप्त वंश के महाप्रतापी राजा चन्द्रगुप्त प्रथम (ई० स० ३१९-३३५) का विवाह भगवान् महावीर के लिच्छवी वंश की जैन राजकुमारी कुमार
१. (क) डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन-भारतीय इतिहास : एक दृष्टि-पृ० १४० (ख) बुन्देलखण्ड का इतिहास एवं जैन पुरातत्त्व, उद० महावीर स्मारिका,
अंग ७१, पृ० ११७ २. (क) डॉ० हीरालाल जैन-भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान
(ख) प्रो० कृष्णचन्द्र वाजपेई-प्राचीन भारतीय संस्कृति-पृ० ४८३
(ग) प्रो० कृष्णचन्द्र वाजपेई-भारतीय संस्कृति में मध्यप्रदेश का योगदान ३. डॉ० ज्योतिप्रसाद-भारतीय इतिहास : एक दृष्टि, पृ० १४०
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