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महावीरोत्तर जैन साध्वियों एवं महिलाएं : १४५ ने तत्कालीन राजकीय परिस्थिति को देखकर राज्य की ओर से यह नियम बनाया कि कोई भी व्यक्ति संन्यास तभी ले सकता है जब कि उसे राज्य के किसी विशेष अधिकारी को अनुमति प्राप्त हो। साथ ही यह भी आवश्यक था कि गृहस्थ जीवन त्यागने से पूर्व अपने पुत्र एवं पत्नी के भरण-पोषण की उचित व्यवस्था करे। इस नियम के सख्ती से परिपालन हेतु ग्रामवासियों को आदेश दिया गया था कि अप्रमाणित संन्यासी को कोई भी अपने यहाँ शरण न दे । उन्हें भय था कि ऐसा करने से राज्य की समाजार्थिक स्थिति संकटापन्न हो सकती है।' ___ कालांतर में बौद्ध धर्मानुयायी सम्राट अशोक चन्द्रगुप्त मौर्य के दक्षिण की ओर प्रस्थान करने पर, पाटलीपुत्र तथा उज्जयिनी का शासक बना।
असन्ध्यमित्रा :
सम्राट अशोक ने विदिशा के जैन श्रेष्ठि को रूपवती कन्या असन्ध्यमित्रा मे विवाह किया था, जिससे कुणाल नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ था। कुणाल का मातृ धर्म तो जैन ही था अतः वह भी उससे अप्रभावित न रह सका। जन्मान्ध कुणाल को माता एवं पत्नी दोनों ही परम जिन भक्त थीं, उनके सान्निध्य से कूणाल भी एक उत्तम जैन श्रावक बना। इसकी पुष्टि आचार्य हेमचन्द्र के कथानकों से होती है।
जिस प्रकार मौर्यवंशीय सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल (ई० पू० २७३) में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार भारत तथा अन्य सुदूर देशों में किया। उसी प्रकार राजा सम्प्रति (अशोक का पौत्र) ने अपने शासनकाल (ई० पू० २३०-१९०) में जैनधर्म का प्रचार-प्रसार किया। कथानुसार एक बार आचार्य सुहस्ति को देखकर राजा सम्प्रति को अपने पूर्व जन्म का स्मरण हुआ और उससे प्रभावित होकर वह आचार्य का
१. डॉ० राधाकुमुद मुकर्जी-चन्द्रगुप्त मौर्य और उसका काल-पृ० २४३ (हिन्दी
मुनीश सक्सेना) २. चन्द्रगुप्त, अशोक, कुणाल एवं सम्प्रति का आगमिक उल्लेख तो है लेकिन
असन्ध्यमित्रा (अशोक की पत्नी) का उल्लेख नहीं हुआ है। सम्प्रति-प्राकृत
प्रापर नेम्स पृ० ७४१ तथा कुणाल-पृ० १८८ ३. डा० ज्योतिप्रसाद जैन-प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं
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