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महावीरोत्तर जैन साध्वियां एवं महिलाएँ : १४३ स्वागत है।" चौथे शिष्य स्थूलभद्र को आते हुए देख कर आचार्य ने स्वागत करते हुए कहा, "दुष्कर से भी अतिदुष्कर कार्य को करने वाले साधकशिरोमणि ! तुम्हारा स्वागत है ।"१ । __सिंहगुफा के द्वार पर साधना करने वाले साधु ने अगले चातुर्मास पर कोशा गणिका के यहाँ चातुर्मास व्यतीत करने की आज्ञा गुरु से मांगी। चित्रशाला के वातावरण तथा कोशा के रूप-रंग से आकर्षित होकर मुनि विचलित हो उठे और कोशा के संग से सांसारिक सुख भोगने का आग्रह करने लगे। इस पर श्राविका कोशा ने उन्हें चारित्र में स्थिर करने के लिये नेपाल से रत्नकंबल प्राप्त करने को कहा । विषयान्ध मुनि अपने मुनि चारित्र तथा मुनि धर्म को त्याग कर नेपाल को ओर रत्न कंबल लेने चल पड़ा। रत्नकंबल की प्राप्ति से आनंदित होकर मुनि पुनः कोशा के आवास में आया लेकिन धर्म में दृढ़ कोशा ने उस कम्बल के टुकड़े कर, पैर पोंछकर नाली में फेंक दिया । ___ अथक परिश्रम से प्राप्त रत्नकंबल की यह दुर्दशा देख कर मुनि खिन्न एवं आश्चर्यपूर्ण स्वर में बोला, “मीनाक्षी! इतने कठिन परिश्रमों से प्राप्त इस अमूल्य रत्नकम्बल को तुमने अशुचिपूर्ण कीचड़ में फेंक 'दिया, तुम बड़ी मूर्खा हो ।”
कोशा ने तत्क्षण उत्तर दिया-"तपस्विन्, आप अपने अमूल्य चारित्र. रत्न को अशुचिपूर्ण गहन गर्त में गिरा रहे हैं ।" इस बोध से मुनि पुनः चारित्र पर दृढ़ हुए और कोशा का उपकार मान कर गुरु के पास जाकर प्रायश्चित्त ग्रहण किये। यूनानी यात्रा वर्णन-श्रमणियों का उल्लेख :
भारत पर यूनानी नरेश सिकन्दर का आक्रमण ई० पू० ३२७ में हुआ था। यूनानियों के यात्रा वर्णन में श्रमण तथा श्रमणियों का उल्लेख प्राप्त होता है। ___"जब सिकन्दर के सेनापति पुनः लौट कर तक्षशिला के पास से जा रहे थे, तब यूनानी प्रत्यक्षदर्शियों ने पाया कि पुरुषों के साथ स्त्रियाँ भी
१. आ० हस्तीमलजी-जैन धर्म का मौलिक इतिहास-पृ० ३९९ २. वही पृ० ४०२ ३. मैक्रिण्डल ई० एन० टी० श० रोड-ऐशियेण्ट इण्डिया-पृ० १८
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