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महावीरोत्तर जैन साध्वियां एवं महिलाएँ । १४९ नेतृत्व में तीन सौ जैन साध्वियां भी इस परिषद् में सम्मिलित हुई थीं। इस विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि उस समय तक तीर्थंकर महावीर के चतुर्विध संघ का अस्तित्व था, तथा धर्म की डांवाडोल स्थिति को पुनः स्थापित करने में सक्रिय कार्य कर रहा था। तीर्थंकर महावीर के पश्चात् भी जैन धार्मिक इतिहास में साध्वियों का बहुत बड़ा योगदान रहा है।
यद्यपि आर्या पोइणो के कुल, वय, शिक्षा, दीक्षा एवं साधना संबंधी विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं हैं। फिर भी उपलब्ध कथानकों के आधार पर साध्वी यक्षा के पश्चात् आर्या पोइणी का साध्वी संघ में प्रमुख स्थान था। इसे मान लेने में किसी को एतराज नहीं होना चाहिए । वे एक बहुश्रुता, संघ-संचालन में कुशल एवं आचारवान् साध्वी थीं। साध्वी संघ में आर्या पोइणी के ज्ञान गरिमा का विशेष आदर एवं महत्त्वपूर्ण स्थान था।
प्राकृत पोइणी शब्द का संस्कृत रूपान्तर पोतिनी जिसका हिन्दी अर्थ जहाज होता है, यह आर्या भव्य जन को भवसागर से पार लगाने वाली धर्म जहाज थी। वीर निर्वाण की चौथी शती में भारत के विभिन्न प्रान्तों में श्रमणों की तरह श्रमणियाँ भी साहस व विश्वास के साथ पैदल विहार (एक जगह से दूसरे स्थान पर जाना) करती हुई जनमानस में आध्यात्मिक चेतना उत्पन्न करती थीं तथा धर्म-प्रचार के कार्यों में संघ को सहायता प्रदान करती थीं। साध्वी सरस्वती :
धारावास के राजा वज्रसिंह और उनकी रानी सुरसुन्दरी के पुत्र का नाम कालक तथा पुत्री का नाम सरस्वती था। राजकुमारी नाम के अनुरूप रूप और गुणों में भो सरस्वती के समान थी। दोनों भाई-बहन परस्पर स्नेह के कारण साथ ही रहते थे।
१. हिमवन्त स्थविरावली (अप्रकाशित) २. आ० हस्तीमलजी-जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग २, पृ० ७८२ ३. कल्पसूत्रवृत्ति पृ० १३१, निशीथचूणि तृ० पृ० ५९, व्यवहारसूत्रभाष्य,
१२, पृ० ९४ आदि । ४. आ० हस्तीमलजी-जैन धर्म का मौलिक इतिहास पृ० ५१०
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