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महावीरोत्तर जैन साध्वियों एवं महिलाएं : १३५ कूप में कूदा पर वह पुनः वानर बन गया । अतः आप भी संसार-सुख भोग से विरक्त होकर इस दशा को प्राप्त न होइए।" ___इसके प्रत्युत्तर में जम्बूकुमार ने संसार की अतृप्त भावना का उदाहरण दिया-“सांसारिक भोग उस तृष्णा के समान है, जिसमें अंगारकारक ( कोयले बनाने वाले को) की अति तीव्र प्यास किसी भी प्रकार के जल से नहीं बुझी । अतः संसार सुख के भोग-विलास की कामनाएँ कभी भी तृप्त नहीं होतीं।' इस प्रकार आठों कन्याओं ने आठ दृष्टान्त दिये जिसके उत्तर में जम्बूकुमार ने त्याग की महत्ता पर प्रकाश डाला। अतः त्याग वैराग्य में लीन जम्बूकुमार ने अपनी नवविवाहित पत्नियों को अपने मार्ग की अनुगामिनी बना लिया और इस प्रकार सम्पूर्ण रात्रि आत्मोत्थान के गंभीर वार्तालाप में समाप्त हो गई।
उसी रात्रि कुख्यात डाकू प्रभव ने अपने ४९१ साथियों के साथ जंबूकुमार के घर में चोरी के लिए प्रवेश किया। संयोग से प्रभव ने दरवाजे की ओट से जम्बकुमार और उसकी आठ नवविवाहिता पत्नियों के साथ हो रही त्याग तथा वैराग्य सम्बन्धी चर्चा को सुना, परिणामस्वरूप उसके मन में भी आत्मकल्याण की भावना का सूत्रपात हुआ । प्रातःकाल जम्बुकुमार, उसकी आठों रानियाँ, उसके माता-पिता तथा प्रभव सहित पाँच सौ चोरों, कुल मिलाकर पाँच सौ सत्ताईस लोगों ने संसार त्याग कर, प्रव्रज्या ग्रहण की।
महावीर निर्वाण के पश्चात् आचार्या चन्दनबाला के साध्वी संघ में एक साथ सत्रह सुशिक्षित श्रेष्ठि कन्याओं तथा महिलाओं ने दीक्षा लेकर संघ में प्रवेश किया। उस समय संघ का नेतृत्व आर्या सुव्रता नाम की साध्वी के हाथ में होने का उल्लेख मिलता है । वीरजिणिदचरिउ (दिगम्बर) ग्रन्थ में जम्बूकुमार की चार पत्नियों का उल्लेख प्राप्त होता है।
मूल्यांकन : कर्म सिद्धान्त के अनुसार इन महिलाओं के भी कर्म क्षय हो चुके थे इसलिए वे वैराग्य वृत्ति में आकर साधना रत हई । सामा
१. (क) उपा० विनयविजयजी-कल्पसूत्र सुबोधिका-पृ० १३०
(ख) वीर जिणिद चरिउ-१० ४९ (४-६-२६)
(ग) नंदीसूत्र चूणि-पृ० २६ २. राजमलजी-जंबूस्वामी चरित्र-पृ० ४१-४३
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