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तीर्थकर महावीर के युग की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएँ : १०१
तथा तत्कालीन उदयन राजा की बुआ थी।' वह श्रमणोपासिका थी तथा अर्हत् धर्म पर श्रद्धा करने वालों का आदर-सत्कार करना अपना धर्म समझती थी।
तीर्थंकर महावीर कैवल्य प्राप्ति के तृतीय वर्ष में विहार करते हुए कौशाम्बी के 'चन्द्रावतरण' चैत्य में पधारे । यह शुभ सन्देश सुनकर जयन्ती राजा उदयन तथा मृगावती के साथ समवसरण में वन्दन करने गई। देशना के पश्चात् जयन्ती ने अर्हत् धर्म के तत्त्व तथा दार्शनिक पहलुओं को विस्तार से समझने के लिये चार महत्त्वपूर्ण प्रश्न किये
प्रश्न १ : भगवन् ! जीव हल्का कैसे होता है और भारी कैसे होता है ? प्रश्न २ : भगवन् ! भव्यपन, अर्थात् मोक्ष प्राप्त करने की योग्यता,
जीव में स्वभावतः होती है या परिणाम से ? प्रश्न ३: भगवन् ! क्या सब भव-सिद्धिक मोक्ष जाने वाले हैं ? प्रश्न ४ : भगवन् ! यदि सब भव-सिद्धिक जीवों की मुक्ति होना
माना जाय तो क्या संसार कभी भव्य जीवों से खाली शून्य हो जायेगा ?
उपरोक्त चारों प्रश्नों के उत्तर भगवान् महावीर ने इस 'प्रकार दिये :उत्तर प्रश्न क्र० १–हिंसा, असत्य आदि अठारह दोषों के सेवन से इस
जीव पर इतना अधिक पाप कर्मों का भार हो जाता है कि वह नरक, तिथंच आदि गतियों में निम्न स्थान
प्राप्त कर महान् दुःख सहन करता है। उत्तर प्रश्न क्र० २-हिंसा, असत्य आदि की निवृत्ति से जीव को तीव्र
कर्म का बंध नहीं होता और वह संसार भ्रमण से बचकर शीघ्र मुक्ति मार्ग को प्राप्त करने में सफल
होता है। उत्तर प्रश्न क्र० ३-इसका उत्तर प्राप्त हआ कि मोक्ष प्राप्त करने
___की योग्यता परिणाम से नहीं है किन्तु स्वभाव से है।
१. भगवतीमूत्र शतक, १२-३-२, सूत्र ४४३ २. आ० हस्तीमलजी मेवाड़ी-आगम के अनमोल रत्न, पृ० ७८५ ३. आ० हस्तीमलजी-जैनधर्म का मौलिक इतिहास-पृ० ४०६
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