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तीर्थंकर महावीर के युग की जैन साध्वियों एवं विदुषी महिलाएँ : ७५
उनकी दृष्टि जाँघ के तिल पर पड़ गई । अतः राजा के प्रशंसा के विचार एकदम क्रोध में परिणत हो गये तथा उन्हें रानी व चित्रकार के चरित्र पर संशय हो गया । मन में विचार उत्पन्न हुआ कि बिना रानी को देखे चित्रकार को इस गुप्त-स्थान के तिल का कैसे पता चल सका । चित्रकार ने राजा को यक्ष के वरदान की बात बताई परन्तु राजा को शंका का निवारण नहीं हो सका। राजा ने चित्रकार का अंगूठा कटवा कर उसे चित्रशाला से हटा दिया ।
इस अनहोनी घटना से चित्रकार को आघात लगा तथा वह अपनी कला के इस अपमान को सहन नहीं कर पाया। बदले की भावना के वशीभूत होकर रानी मृगावती का नयनाभिराम चित्र बनाकर तत्कालीन उज्जैन नगरी के स्त्री-लोलुप राजा चन्द्रप्रद्योत को दिखाया । चन्द्रप्रद्योत ने रानी मृगावती को प्राप्त करने की इच्छा से शतानीक की राजधानी कौशाम्बी पर चढ़ाई कर दी राजा शतानीक यह आघात सहन नहीं कर पाये जिससे उनको मृत्यु हो गई ।
रानी मृगावती पर मानो वज्रपात हो गया। पति की अचानक मृत्यु, राजकुमार उदयन का अवयस्क होना व राज्य पर शक्तिशाली राजा का आक्रमण व नगर का घेराव इन परिस्थितियों का सामना रानी मृगावती ने बहुत धैर्य, चतुरता व साहस के साथ किया । उन्होंने अपने विश्वस्त दूत के द्वारा राजा प्रद्योत के सैन्यशिविर में सन्देश भिजवाया, "मेरे पति राजा शतानीक का स्वर्गवास हो गया है, मैं आपकी शरण में हूँ परन्तु पुत्र उदयन अभी अवयस्क है । आसपास के राजा भी इस नगरी पर चढ़ाई करने के लिये तत्पर हैं । अतः इस नगर को सुरक्षित रखने के लिये इसके चारों ओर ईंटों का कोट बँधवा दीजिये तथा. धन-धान्य से कौशाम्बी नगरी को भरपूर कर दीजिये ।" मोह के वशीभूत राजा ने यह सब स्वीकार कर लिया। रानी मृगावती ने अपने को पूर्णं सुरक्षित पाकर किले के द्वार बन्द करवा दिये ।' इन सब घटनाओं से दुःखित हो उसे जीवन की नश्वरता का भान हुआ और वह महावीर के आगमन की आतुरतापूर्वक राह देखने लगी ।
एक दिन महावीर के आगमन का सन्देश पाकर वह धन्य हो उठी । उसने दीक्षित होने का दृढ़ संकल्प किया तथा नगर के दरवाजे खुलवाकर राजसी ठाठ से भगवान् महावीर के दर्शन व प्रवचन सुनने नगर के मध्य
१. त्रिषष्टिशलाकापुरुष - पर्व १०, सगँ ८, पृ० १५१
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