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८२ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएँ मेरे अन्तःपुर में दुराचार फैल गया है अतः उसे जला दो । अभ यकुमार ने अपने बुद्धिचातुर्यं से एक हाथी बाँधने का जीर्ण घर जलवा कर राजा श्रेणिक को अन्तःपुर जल जाने का विश्वास दिलाया । __ राजा श्रेणिक महावीर को वंदन करने गये, वहाँ उन्होंने भगवान् से पूछा कि चेलना पतिव्रता है कि नहीं। प्रभु बोले, राजन् तुम्हारी धर्मपत्नी चेलना महासती है तथा शील और अलंकार से शोभित है राजा तत्काल नगर की ओर वापस आया और अभयकुमार के बुद्धि कौशल से अपने अन्त पुर को सुरक्षित पाकर अत्यन्त हर्षित हुआ। चेलना की पतिभक्ति : __ अभयकुमार के दीक्षित होने के बाद राजा कूणिक ने किसी कारण वश श्रेणिक को बन्दीगृह में डाल दिया। उनके पास जाने की इजाजत किसी को नहीं थी। कर्तव्य बोध से प्रेरित होकर कूणिक ने माता चेलना को जाने की अनुमति दे दी थी। चेलना सौ बार सूरा से (शराब से) बालों को धोकर गीले बालों को बांधकर शीघ्रता से श्रेणिक के कारावास में जाती थी और केश के बीच कूल्माष (उड़द) का एक लड्डू भी छिपा कर ले जाती थी। इसे ही राजा दिव्य भोजन समझकर खाता था तथा बालों से टपकने वाली सुरा का पान करके तृप्त होता था ।
एक समय जब राजा कूणिक भोजन कर रहा था तब उसका पुत्र उसकी गोंद में बैठा अठखेलियां कर रहा था तथा माता चेलना भी पास में बैठी हुई थीं। भोजन करते समय पूत्र ने पेशाब कर दिया तथा भोजन के थाल में भी उसका कुछ अंश चला गया। राजा कूणिक भोजन का कुछ हिस्सा फेंक कर बाकी खाना खाने लगा और माता चेलना से पूछने लगा कि मेरे जैसा पूत्र-प्रेम और कोई पिता करता होगा क्या ? रानी चेलना ने कहा अरे पापी, तेरे पिता श्रेणिक इससे भी अधिक तुझे प्यार करते थे। मेरे गर्भ में जब तू आया उस समय मुझे अपने पति का कलेजा खाने का दोहद उत्पन्न हुआ और राजा श्रेणिक ने अभयकुमार की मदद से मेरी इच्छा तृप्त भी की थी। तभी मैंने यह जान लिया था कि तू पिता की बैरी बनेगा अतः जन्म से हो मैंने तुझे जंगल में भिजवा दिया, पर राजा श्रेणिक ने पुत्रस्नेह के वशीभूत होकर तुझे पुनः मंगवा लिया १. (क) त्रिषष्टिशलाकापुरुष, पर्व, १०, सर्ग ७, पृ० १२५
(ख) आवश्यकचूणि, द्वि०, पृ० १६४-६६ (ग) जैनधर्म का मौलिक इतिहास, पृ० ५३४
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