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तीर्थकर महावीर के युग की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएँ । ६५ हुआ कह सकती हैं । जलते हुए को जला हुआ कहना यह तो श्री अर्हन्त का वचन है।
यह सुनते ही साध्वी प्रियदर्शना को शुद्ध बुद्धि उत्पन्न हुई, उनका भ्रम दूर हो गया । वे बोलीं- "श्रावक ढंक, तुम्हारा कहना यथार्थ है। जो किया जा रहा है उसे किया हुआ कह देना, ऐसा सर्वज्ञ का कथन सत्य है"। अपनी भूल पर पश्चात्ताप करती हुई साध्वो प्रियदर्शना जमालो के सिद्धान्त को त्याग कर अपने साध्वी समुदाय के साथ तीर्थंकर महावीर के संघ में पुनः सम्मिलित हुई। सुदर्शना२ : __तीर्थंकर महावीर की सहोदरा सुदर्शना श्रमण साहित्य में एक महत्त्वपूर्ण महिला के रूप में जानी जाती हैं। इनका विवाह क्षत्रियकुण्ड के एक अत्यन्त सम्पन्न तथा प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। इन्हें जमाली नामक एक प्रतिभा सम्पन्न, उदारमना, विवेकशील पुत्र की माता बनने का सौभाग्य प्राप्त था। इसी इकलौते पुत्र का पाणिग्रहण संस्कार उन्होंने वर्द्धमान महावीर को सर्वगुण सम्पन्न विदुषी कन्या प्रियदर्शना के साथ किया। परम्परानुसार कुलवृद्धि को ध्यान में रखते हुए अन्य कुलीन आठ कन्याओं का भी जमाली के साथ विवाह किया। इस प्रकार सुदर्शना का तीर्थंकर महावीर से निकटतम सम्बन्ध था। वे स्वयं भी श्रमणोपासिका थीं और महावीर के उपदेशों व दार्शनिक कथनों पर श्रद्धा-भकि रखती थीं।
एक समय तीर्थंकर महावीर के उपदेशों से प्रभावित होकर जमाली ने महावीर से प्रव्रज्या ग्रहण करने की भावना माता-पिता के सामने प्रकट की । पुत्र वियोग की आशंका से माता-पिता की आँखों में आंसू आ गये । अपनी एकमात्र संतान द्वारा युवावस्था में संसार त्याग व दीक्षित होने की बात सुनकर माता सुदर्शना शोक विह्वल हो गई और इस आघात को सहन न कर सकने के कारण मूच्छित हो गईं। स्वस्थ होने पर माता ने स्वपुत्र को इस आयु में प्रव्रज्या नहीं लेने हेतु हर प्रकार से समझाया । पर
१. (क) भगवतीसूत्र, शतक १५ ।
(ख) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र-पर्व १०, सर्ग ८, पृ० १४७ २. आचारांग २, १७७, कल्पसूत्र १०९, विशेषावश्यकभाष्य २८०७, आवश्यक
चूणि प्र०, पृ० २४५, ४१६, आवश्यकभाष्य १२५, निशीथभाष्य ५५९७
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