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६८ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं की शिक्षा का ही परिणाम था कि चन्दनबाला बचपन से त्याग, सहिष्णुता और धर्मनिष्ठा की प्रतिमूर्ति बन गई।'
आत्म कल्याण के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य धारण कर लोकोन्नति करने के संस्कार उसमें बचपन से ही बन गए थे। वय विकास क्रम से इसके विचार दृढ़ से दृढ़तर होते गए । योग्य वर के साथ कन्या का विवाह हो जाए, माता-पिता की यह स्वाभाविक इच्छा थी परन्तु राजकुमारी के अविवाहित रहने का दृढ़ निश्चय देखकर उन्होंने इसका प्रतिकार नहीं किया और पुत्री को अपने व्रत पर दृढ़ रहने को सहर्ष अनु मति दे दी।
दुर्भाग्यवश एक समय कौशाम्बी के राजा शतानिक ने चम्पानगरी पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। विजय के मद में एक रथी सैनिक छलपूर्वक राजमहल में घुस आया और बलपूर्वक रानो धारिणो और चन्दनबाला को रथ में बिठाकर जंगल को ओर चल पड़ा । इन सैनिक ने धारिणी का शीलभंग करना चाहा, पर अपने सतीत्व की रक्षा का कोई अन्य उपाय न देख उसने स्वरक्षा के लिये अपनी जीभ काट ली। इस प्रकार अपने प्राणों का उत्सर्ग करके सतीत्व को रक्षा की । इस करुण
और बलिदानयुक्त घटना से सैनिक का कठोर हृदय विचलित हो गया । प्राण-त्याग के लिए आतुर चन्दनबाला को उसने समझाया और उसे अपनी पुत्रो मानकर अपने घर ले गया ।२
राजमहल में पली बालिका चन्दनबाला ने सैनिक को पिता की तरह
१. हेमचन्द्राचार्य-त्रिषष्टिशलाकापुरुष, पर्व १०, सर्ग ४, पृ० ८४ २. (क) वही, पर्व १०, सर्ग ४, पृ० ८४
(ख) आचार्य गुणभद्र ने उत्तरपुराण में चन्दना का वर्णन इस प्रकार किया है
"एक बार चेटक की पुत्री चन्दना वन क्रीड़ा में मग्न थी तब एक विद्याधर उसके रूप पर मोहित होकर उसे किसी उपाय से उठाकर ले गया। जब वह घर पहुंचा तो उसकी पत्नी ने उसे बहुत भला-बुरा कहा । अतः विद्याधर ने अपनी गलती स्वीकार की और चन्दना को किसी वन में छोड़ गया। वहाँ एक भील ने पैसे के लोभ में पड़कर चन्दना को वृषभदत्त सेठ के हाथों बेच दिया । नारी के प्रति समाज में हीन भावना थी, उसका शब्दों के द्वारा विरोध किये बिना ही चन्दनबाला ने अपने कर्तव्य और धर्मनिष्ठ जीवन से नारी को सम्मानित किया।"
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